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पृथ्वी का बढ़ता तापमान…एक चेतावनी

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

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भारत नेपाल सीमा रक्सौल में पिछले तीन-चार दिन से पारा ४२ तक जा पहुंचा है,जो पिछले साल के महत्तम तापमान से अधिक है। ऊँचे तापमान के कारण जल स्तर नीचे चला गया है। हैण्डपम्प और मोटर पम्प से पानी की मात्रा ५० फीसदी से अधिक घट गई है।
यह केवल हमारी समस्या नहीं है,जिस रफ्तार से दुनिया चल रही है, उससे तापमान बढ़ोतरी तीन,साढ़े तीन डिग्री तक होने की आशंका है जो पूरे विश्व के लिए एक बड़ा खतरा है। रिकार्ड दर्शाते हैं कि १९ वीं सदी की औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। कोयले और तेल के बढ़ते प्रयोग के चलते वायुमंडल के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में तेजी से वृद्धि हुई है। मीथेन,ओजोन और अन्य गैसों के साथ धूल कण में भी वृद्धि हुई है। इन सबका विपरीत प्रभाव पृथ्वी की जलवायु पर पड़ा है।
यदि पर्यावरण को लेकर हम अब भी गंभीर नहीं होते हैं,पेड़ों,जंगलों और नदियों के संरक्षण को लेकर अब भी जागरूक नहीं होते हैं तो तापमान इसी गति से साल दर साल बढ़ता जाएगा और हालात बिगड़ते जाएंगेl
यह समझना बेहद जरूरी है कि पेड़ लगाना, जंगलों को कटने से बचाना, नदियों को जीवित रखना केवल सरकारों और समाजसेवी संगठनों का काम नहीं है,यह हम सबकी साझा जिम्मेदारी हैl यह हमारे जीवन से जुड़ा विषय हैl
पृथ्वी का बढ़ता तापमान प्रकृति की ओर से एक चेतावनी है,अब भी नहीं जगे तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी इंसानों के रहने के लिए अनुकूल जगह नहीं रह जाएगीl

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