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पेट्रोल-डीजल में और आग लगनी चाहिए!

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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आजकल मूल समस्या से भटकाने का एक सूत्र-बड़ी समस्या खड़ी कर दो। जैसे सरकार एक क्षेत्र में सफल हो गई है तो उससे मंत्रमुग्ध होकर दूसरी विफलता को सामने रख देना,जैसे-हाथी पाँव में सब पाँव समाँ जाते हैं,उसी प्रकार पेट्रोल-डीजल के दाम का कारण विश्वव्यापी समस्या का नाम बताकर दाम बढ़ाओ। सरकार यह नहीं बता रही है कि,उसमें छिपा हुआ कर कितना है ?
आज केन्द्र सरकार के मुखिया का दावा पूर्ण खोखला साबित हो रहा है। जब वे २०१४ में सत्ता में आए थे,तब कहा था कि ‘हम पेट्रोल के दाम ४० रूपए कर देंगे।’ हमें चालीस रूपए नहीं चाहिए, पेट्रोल के दाम हमें चाहिए कम से कम २०० रूपए मात्र। और और दाल-चावल के दाम भी कम से २०० रूपया कर दीजिए तत्काल,कारण एक बार में हम निश्चिन्त हो जाएं और खाने का तेल ५०० रुपए। कारण कि,हमारे मुखिया घी-तेल नहीं खाते। और वे नहीं खाते तो दूसरों को क्यों खाने देंगे ?
वैसे हमारे माननीयों को खुद का खर्च नहीं करना पड़ता है। उनके तो इशारे में काम होता है। कुछ वर्ग हैं,जैसे-मंत्री,अफसर धनाढ्य लोग इनको बाज़ार नहीं जाना पड़ता है-सामग्री घर पर अपने-आप आती है। वैसे यह प्रयास बहुत अच्छा है। यह एक प्रकार से गरीबी हटाओ आंदोलन का एक अंग है। उसी के तहत बेरोजगारी भी दूर हो रही है, और इसके कारण भण्डारण बढ़ रहा है,और कारण कोई खरीददार नहीं मिल रहा है।
लोक कल्याणकारी राष्ट्र की सच्ची भूमिका देश में चल रहा है। अभी मुख्य समस्या के बचाव में कवच का काम कर रहा है ‘कोरोना।’ इसने सरकार की सब दिक्कतों को ओढ़ के रखा है। हम चाहते हैं गरीब मिट जाए तो गरीबी नहीं रहेगी। इस दिशा में जनता अपना सब-कुछ देने को तैयार है,वह अपने प्राण और सर्वस्व निछावर करने को तैयार है। गरीब और मध्यम वर्ग आपसे कभी नहीं कहेगा-सरकार मंहगाईं कम करो। कारण कि,उसके पास खरीदने की क्षमता ही नहीं रहेगी।
मुखिया अभी से २०२४ के आम चुनाव की तैयारी में जुटे हैं और चुनाव के समय कोई भी हथकंडा अपना कर चुनाव जरूर जीतेंगे। हम भी चाहते हैं कि,वे ही जीतें,कारण-तब तक १० वर्षों का अनुभव होने से गरीब और मध्यम वर्ग रहेगा ही नहीं-बस अफसरशाही और मजदूर वर्ग। एक और अपेक्षा है कि,प्रधानमंत्री भारत में राष्ट्रपति प्रणाली लागू करें। राष्ट्रपति पद समाप्त होना चाहिए,क्योंकि हमारे माननीय को किसी के सामने हाथ फैलाने और झुकने की आदत नहीं है।
भगवान् ऋषभदेव की २ पुत्रियाँ-ब्राह्मी और सुंदरी ने विवाह इसलिए नहीं किया था की पिता को ३ लोगों के सामने सिर झुकाना पड़ता है-माँ-बाप, गुरु और दामाद तो उन्होंने प्रण किया था कि, हमारे कारण पिताजी को दूसरे के सामने सिर झुकाना पड़ेगा,तो वे अविवाहित रहीं। ऐसे ही हमारे मुखिया जी को कोई से आज्ञा नहीं लेना होती है।
हमारा देश कुछ वर्षों में गरीबी मुक्त होगा और जनता गूंगी-बहरी होगी,और जो भी औलादें होंगी वे सब आज्ञाकारी होंगी। व्यापार नहीं होने से शांति होगी,धन्ना सेठ लोगों को बहुत आराम मिलेगा। गरीबों को खुली छत रहेगी,जिससे बिजली-पानी की समस्या नहीं रहेगी। खाने-पीने के लिए रहेगा नहीं,तो सुख से सो ही जाएंगे ना…।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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