संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
*************************************
गणतंत्र दिवस:लोकतंत्र की नयी सुबह (२६ जनवरी २०२५ विशेष)…
“लोगों ने, लोगों के लिए
लोगों द्वारा चलाई गई सरकार”,
ऐसा ही कुछ कहा था अब्राहम लिंकन ने
प्रजातंत्र के गणराज्य के लिए,
दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र
भारत गणराज्य के ज़िम्मेदार प्रजा
सरकार बनाने वाले हम सैंकड़ों साल,
किसी न किसी शासक के
बने रहे गुलाम या बना दिए गए।
इंसान ही तो है, जागृत होना ही था,
अवसर मिलते ही, पढ़े, बढ़े और सोचने लगे
कब तक हम रहें गुलाम!
कब तक रहें किसी के अधीन,
फिर छिड़ी जंग आज़ादी की
क्रांति के मतवाले तथा,
शांति के मार्ग पर चलने वाले
कईयों ने दी कुर्बानी,
न देखी जात, न देखा धर्म
न देखा प्रांत, न देखा समाज,
कूद पड़े आजादी के दिवाने
मैदाने जंग में…।
इनका एक ही था सपना,
यह देश हो अपना
यहाँ राज चले अपना,
अमीर, गरीब, अनपढ़, पढ़े-लिखे,
बुद्धिमान सबको मिले अधिकार समान,
न्याय-समता-बंधुत्व की परिभाषा का
सबको मिले सम्मान,
लेकिन केवल कागज़ों पर या किताबों में…
प्रजातंत्र न रहे सिकुड़कर,
लेकिन आज की हालत क्या है।
सच्चाई तो ये है, न तो समानता है,
न संपत्ति समान बँटवारा
न शिक्षा सबको है,
न स्वास्थ्य और उपचार
न मिल रही दो जून की रोटी
भूखे सोते हैं कई परिवार।
‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ का क़ानून,
प्रजा द्वारा चुने गए लोक प्रतिनिधि
प्रजा को ही चूना लगाते हैं
अब प्रजा को जागना होगा,
सबको शिक्षित करना होगा
सब हों स्वास्थ्य लाभ के हकदार,
संपत्ति का हो समान बँटवारा
जिसकी जितनी संख्या भारी,
उतनी हो उसकी भागीदारी
कौशल, शिक्षा और रोज़गार की
मिले गारंटी सबको।
तभी यह सच्चा प्रजातंत्र होगा,
तभी यह देश गणराज्य कहलाएगा॥