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प्रवासी भारतीय और विश्व संस्कृति

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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९ जनवरी को भारत में ‘भारतीय प्रवासी दिवस’ मनाया जाता है,लेकिन आज इसे लेकर देश में ज्यादा हलचल नहीं दिखाई दी,क्योंकि एक तो नेता लोग चुनाव-अभियान में व्यस्त हैं और दूसरा कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल भी प्रवासी सम्मेलन नहीं हो पाया था। इस महान संस्था की नींव प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने २००३ में रखी थी। प्रसिद्ध विधिवेत्ता और समाजसेवी डाॅ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी एवं राजदूत जगदीश शर्मा के प्रयत्नों से इस संस्था की स्थापना हुई थी। इस काम को बालेश्वर प्रसाद अग्रवाल की स्वायत्त संस्था अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद पहले से कर रही थी लेकिन उसे बड़ा और व्यापक रुप देने में अटल जी ने यह उत्तम पहल की थी।
इस समय दुनिया के देशों में भारतीय प्रवासियों की संख्या लगभग सवा ३ करोड़ है। इतनी आबादी तो ज्यादातर देशों की भी नहीं है। ये भारतीय पहले तो मॉरिशस,फिजी,सूरिनाम और गयाना-जैसे देशों में ले जाकर इसलिए बसाए गए थे कि क्योंकि इन देशों में अंग्रेज शासकों को मजदूरों की जरुरत थी। इन सभी देशों में हमारे मजदूरों के बेटे,पोते और पड़पोते आज प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति हैं। इनके अलावा दर्जनों देशों में पिछले १०० वर्षों में हजारों-लाखों भारतीय शिक्षा,व्यापार,नौकरी और जीवन-यापन के लिए जाकर बसते रहे हैं। कुछ लोग वहीं पैदा हुए हैं और कुछ लोग यहां से जाकर वहां के नागरिक बन गए हैं। इसके साथ-साथ दर्जनों देशों में वे अल्पसंख्या में रहते हुए भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,विदेश मंत्री,सांसद आदि पदों पर शोभायमान हो रहे हैं। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं। ये लोग वहां रहकर ऐसा जीवन जीते हैं,जिसका अनुकरण सभी विदेशी लोग करना चाहते हैं। भारतीयों के पारिवारिक जीवन,सहजता, सादगी,परिश्रम,ईमानदारी आदि की चर्चा विदेशियों से कई बार सुनी है। विदेशों में रहनेवाले भारतीयों में आप जाति,मजहब,भाषा और ऊँच-नीच का भेदभाव भी नहीं देख पाएंगे। दुनिया का कोई महाद्वीप ऐसा नहीं है,जहां भारतीयों को आप नहीं पाएंगे। अमेरिका में इस समय लगभग ४५ लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं। लगभग सभी प्रवासी भारतीय उन देशों के आम लोगों से अधिक संपन्न, सुशिक्षित और सुखी हैं। उन्होंने भारत को इस साल साढ़े ६ लाख करोड़ रु. भेजे हैं। अपने प्रवासियों से धन प्राप्त करनेवाले देशों में भारत का नाम सबसे ऊपर है और ऐसा पिछले १४ साल से हो रहा है। भारतीयों की खूबी यह है कि विदेशी जीवन-पद्धतियों से ताल-मेल बिठाने के साथ-साथ वे भारतीय मूल्यमानों को भी अपने दैनिक आचरण में गूंथे रखते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि २१ वीं सदी के पूरे होते-होते सारी दुनिया में भारतीय संस्कृति विश्व-संस्कृति के तौर पर स्वीकृत हो जाए।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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