दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मुंशी जी:कथा संवेदना के पितामह (प्रेमचंद जी स्मृति विशेष)…
उपन्यास सम्राट, कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के नजदीक लमही नामक ग्राम में ३१ जुलाई १८८० ई. को हुआ था। उनके बचपन का नाम धनपत राय था। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया और जीवन बेहद गरीबी में बीता। वो एक विद्यालय निरीक्षक के रूप में कार्यरत थे। उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई तो उनके विचारों से प्रभावित हो अंग्रेजों के विरूद्ध लिखने लगे। पहले वो उर्दू में धनपत राय के नाम से लिखते थे। बाद में नबाब राय के नाम से लिखने लगे। इसी नाम से उन्होंने ‘सोजे वतन’ नाम से किताब लिखी। किताब का असर इतना हुआ कि अंग्रेजों को अपनी सत्ता हिलती नजर आई। फलस्वरुप सारी प्रतियाँ और नवाब राय की नबाबी भी जप्त हो गई एवं वो प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। उनकी सभी कहानियाँ ७ खंडों में ‘मान सरोवर’ नाम से संकलित हैं। उनके प्रमुख उपन्यास-गोदान, गबन, कर्मभूमि, सेवा सदन, निर्मला इत्यादि हैं।
उनकी कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर मशहूर फिल्मकार सत्यजीत रे द्वारा हिंदी में सफल फिल्म बनाई गई है, जिसमें संजीव कुमार, सईद जाफरी, शबाना आजमी, फारूख शेख, फरीदा जलाल, अमजद खान, मिर्जा अली आदि ने काम किया है। इनकी कहानी ‘कफन’ पर भी फिल्म बन चुकी है।
प्रेमचंद जी की कहानियों में-बूढ़ी काकी, नमक का दरोगा, ईदगाह, कफन, २ बैलों की कथा, ठाकुर का कुआं इत्यादि हमेशा लोगों की जुबान पर रहती है।
प्रेमचंद जी विधवा विवाह के पक्षधर थे। इसलिए, उन्होंने एक बाल विधवा शिवरानी देवी के साथ शादी की थी।
उनके बारे में एक घटना बहुत मशहूर है। जाड़े में उनके पास पहनने के गरम कपड़े नहीं थे। शिवरानी जी ने घर खर्च से कुछ पैसे बचाकर रखे थे, जो उन्होंने प्रेमचंद जी को दिए कि, अपने लिए एक कोट खरीद लाएं। जब वो कोट खरीदने गए तो कुछ गरीब ठंड से ठिठुरते मिले। उन्होंने सारे पैसे उन लोगों के वस्त्र खरीदने में खर्च कर दिए। जब घर आए और पत्नी ने सुना वो उनकी सहृदयता पर दंग रह गई। तो ऐसे थे हमारे उपन्यास सम्राट।
बुढ़ापे में उन्हें पेचिश की बीमारी और अन्त समय में खून की उल्टियाँ होने लगी थी। उसी अवस्था में कालजयी उपन्यास पूरा किया था।
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।