रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
*****************************************
जीवन प्रेम है, प्रेम है जीवन,
मधुर है दोनों का ही बंधन
क्षिति जल पावक गगन समीरा,
मिल के बना यह गेह हमारा
प्रेम ने सींचा मानव धड़कन,
जीवन प्रेम है, प्रेम है जीवन।
क्षिति जब तेरे हाथ में आई,
खेतों में हरियाली लहराई
बादल ने जब जल बरसाया,
नहर व बाँध तुमने बनाया
दिया इसी ने ही तो भोजन,
जीवन प्रेम है, प्रेम है जीवन।
अग्नि की फितरत है जलना,
प्रेम क्यों मोम बन पिघला
तू भी प्रस्तर सा बन कर,
प्रेम से सीख ले सब सहना
प्रेम ही है जीवन दर्शन,
जीवन प्रेम है, प्रेम है जीवन।
तू ही शिव है, तू ही शंकर,
तू ही बन सकता प्रलयंकर
संबधों के ये प्रेम के धागे,
जीवन को खुशियों से बाँधे
प्रेम ही है मन का मंथन,
जीवन प्रेम है, प्रेम है जीवन।
अनन्त गगन की अमरता,
देती है आत्मा का पता
आत्मा अमर है, न मरता,
मोह क्यों काया का करता।
प्रेम का न होता अन्त,
जीवन प्रेम है, प्रेम है जीवन॥