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फिरता मैं मारा-मारा

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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पैसे की खातिर मंचों पर,क्यों फिरता मैं मारा-मारा।
सब नोट धरे रह जाएंगे,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा॥

मैं शहर-शहर में घूम रहा,फिर भी मेरा मन खाली है,
ये भूख लगी जो पैसे की,दुर्बल मन की कंगाली है।
बाहर से उजियारा दिखता,अंदर से काला धन रिसता,
इक रोज साँस की डोरी से,छूटेगा तन का इकतारा,
सब नोट धरे रह जाएंगे,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा…॥

साहित्य सदन की महफ़िल में,मैं घूम रहा बनकर छैला,
दर्पण में जब चेहरा देखा,प्रतिबिम्ब दिखा उसमें मैला।
भाड़े का टट्टू बना हुआ,मैं तोता रट्टू बना हुआ,
धन साथ नहीं जा पायेगा,फूंकेगा तन को अंगारा,
सब नोट धरे रह जाएंगे,जिस दिन फूटेगा घट प्यार…॥

सारी बगिया मुर्झायेगी,मैं बना रहा जिसका माली,
सब धरती पर रह जायेगा,जब आएगी लेने काली।
मैं लगा रहा झूठी धुन में,गुण खोज रहा हूँ औगुन में,
मरुथल में मृग-सा घूम रहा,मैं थका-थका हारा-हारा,
सब नोट धरे रह जाएंगे,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा…॥

कविता जिन्दा रह जायेगी,रह जाएंगे कुछ गीत खड़े,
बस चित्र टंगा रह जाएगा,रोते रह जाएं मीत खड़े।
कितना खोया कितना पाया, ‘हलधर’ रखना यह सरमाया,
जिस दिन घर से अर्थी निकले,संसार बिलख रोये सारा।
सब नोट धरे रह जाएंगे,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा…॥

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