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फिर से बच्चे बन जाएं

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष………..

चलो चलते हैं बचपन के गाँव में,
ममता की गोद में,पीपल की छांव में।

फिर खेलें वो खेल,फिर चलाएं अपनी रेल,
वो लुका-छुपी और पोशम्पा की जेल।

वो कागज की नाव,कागज का जहाज,
रंग-बिरंगी ये पतंगें,वो कागज के साज।

आओ चलो फिर बच्चे बन जाएं,
दादी के हाथ की चटनी रोटी खाएं।

न नौकरी की चिंता,फिर भी है अशिक्षा,
न छीनो बचपन इनका,लगा दो मज़दूरी
पर रोक॥
फिर लौट चलें बचपन की ओर…

भाग रहा बचपन शहरों में,छोड़ गाँव की मेढ़,
शहरों में बचपन मोबाइल में हो रहा कैद।

मजदूरी की खातिर शिक्षा पर माता-पिता लगाते खुद रोक,
कभी खेतों में कभी दुकान पर चाय की बचपन की बनी है जेल,
शिक्षा की खातिर, सरकार के उपक्रम भी हो रहे फेल।
अब लौट चलें,फिर खेलें बचपन के वो खेल॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”