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संयम से काम लें भाजपा और ममता

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पश्चिम बंगाल में भाजपा अध्यक्ष जगत नड्डा और भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के काफिले पर जो हमला हुआ,उसमें ऐसा कुछ भी हो सकता था,जिसके कारण ममता बनर्जी की सरकार को भंग करने की नौबत भी आ सकती थी। यदि श्री नड्डा की कार सुरक्षित नहीं होती,तो यह हमला जानलेवा ही सिद्ध होता। कैलाश विजयवर्गीय की कार विशेष सुरक्षित नहीं थी,तो उनको काफी चोटें लगीं। क्या इस तरह की घटनाओं से ममता सरकार की इज्जत या लोकप्रियता बढ़ती है ? यह ठीक है कि भाजपा के काफिले पर यह हमला ममता ने नहीं करवाया होगा। शायद इसका उन्हें पहले से पता भी न हो,लेकिन उनके कार्यकर्ताओं द्वारा यह हमला किए जाने के बाद उन्होंने न तो उसकी कड़ी भर्त्सना की,न ही अपने कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की। बंगाल की पुलिस ने जो प्रतिक्रिया की,वह यह थी कि घटना-स्थल पर खास कुछ हुआ ही नहीं। पुलिस ने यह भी कहा कि कुछ लोगों ने पत्थर जरुर फेंके,लेकिन सभी लोग सुरक्षित हैं। सारी स्थिति शांतिपूर्ण है। जरा सोचिए कि,पुलिसवाले इस तरह का रवैया आखिर क्यों रख रहे हैं ? क्योंकि वे आँख मींचकर ममता सरकार के इशारों पर थिरक रहे हैं। सरकार ने उन्हें यदि यह कहने के लिए प्रेरित नहीं किया हो तो भी उनका यह रवैया सरकार की मंशा के प्रति शक पैदा करता है। यह शक इसलिए भी पैदा होता है कि,ममता-राज में दर्जनों भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है और उक्त घटना के बाद भी एक और हत्याकांड हुआ है। प. बंगाल के चुनाव सिर पर हैं। यदि हत्या और हिंसा का यह सिलसिला नहीं रुका तो चुनाव तक अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है। केन्द्र और राज्य में इतनी ज्यादा ठन सकती है कि,ममता सरकार को भंग करने की नौबत भी आ सकती है। उसका एक संकेत तो अभी-अभी आ चुका है। पुलिस के ३ बड़े केन्द्रीय फसर,जो बंगाल में नड्डा-काफिले की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे,उन्हें गृहमंत्री ने वापस दिल्ली बुला लिया है। ममता इससे सहमत नहीं हैं,लेकिन इस तरह के कई मामलों में अदालत ने केन्द्र को सही ठहराया है। ममता को आखिरकार झुकना ही पड़ेगा। राज्यपाल जगदीप धनखड़ और ममता के बीच रस्साकशी की खबरें प्रायः आती ही रहती हैं। भाजपा की केन्द्र सरकार और ममता सरकार को जरा संयम से काम लेना होगा,वरना बंगाल की राजनीति को रक्तरंजित होने से कोई रोक नहीं पाएगा।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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