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बंटवारा अभिशाप

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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वृहत है परिभाषा,
देश समय वस्तु ग्रह नक्षत्र
अणु परमाणु तत्व प्रकृति,
कण-कण में बंटवारा।
यहां तक कि भावनाएं भी,
अछूती नहीं इस दंश से
मानव-मानव में भेद,
रंग अनुसार बंटवारा।
कहीं अमीर-गरीब का बंटवारा,
धर्म-जाति के नाम पर बंटवारा
हृदय का भी बंटवारा,
प्रेम का बंटवारा।
कहीं बंटवारे से परिलक्षित हो तथ्य,
कहीं बंटवारा अभिशाप
एक विश्व पर देश अनेक,
संस्कृति अनेक परम्पराएं अनेक।
गर हो विविधताओं में एकता,
तो संपूर्णता में ही महानता
एक ईश्वर के अंश हम,
गर समझें ये बात हम।
फिर न हो कोई बंटवारा,
फिर न हो कोई विभेद॥

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