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बचपन का पूरी तरह आनंद लें

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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गर्मी में सभी के अंदाज अपने-अपने हैं और हर दिन निराले होते हैं। घरों में चिंकी, पिंकी, राहुल, श्याम, टीना और भी बहुत से बच्चा पार्टी की धूमधाम, शरारत और धमा-चौकड़ी शुरू हो चुकी है। सुबह से शाम तक मस्ती, मजाक, खेलकूद, हँसी-ठिठौली अब आम बात हो गई है, क्योंकि इन गर्मी के दिन शालाओं में अवकाश से घरों में पूरे दिन उल्लास व आंनद का वातावरण बना हुआ रहता है। दादा, दादी, नाना, नानी, मौसी व चाची के घर जाने के लिए अन्य बच्चे भी अपने परिजनों से बोल रहे हैं। यह दिन यादगार होते हैं, चाहे गाँव में जाना हो या फिर शहर, एक अलग ही अंदाज रहता है। बेफिक्र होकर न पढ़ाई की चिंता, न पापा-मम्मी की डाँट का डर, क्योंकि बड़े-बुजुर्ग हमारे अपने साथी-दोस्त बन जाते हैं, जब हम उनके पास गर्मी की छुट्टी मनाने जाते हैं।
गाँव में एक अलग ही आंनद होता है, दिनभर खेतों में कुएं, बावड़ी, तालाब के आसपास घूमना-फिरना और खेतों में जाना। आम, अंगूर व अन्य फलों को तोड़ना और दोस्तों के साथ मिल-बांटकर ख़ाना, मानो यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है। यहाँ के दिन-रात अलग होते हैं, वही शहरों की दिनचर्या अलग है। पिकनिक स्पॉट पर जाना या शाम को मॉल में घूमने जाना, देर-रात अपने बड़ों के साथ बाजार में शीतल पेय व कुल्फी, लस्सी, रस आदि पीने जाना। कभी-कभी फिल्म देखने जाना, मानो गर्मी की छुट्टी में हम बच्चों की सबसे ज्यादा चाँदी हो जाती है। कोई भी तनाव का काम ही नहीं। सब जगह मस्ती-उमंग का संचार होता है।
पहले तो देर रात तक घरों की गच्चियों में छत पर सोने का मजा ही कुछ और था। कल तक तो यही था, अब तो घरों के अंदर ए.सी., कूलर और पंखे में सोना अच्छा लगता है। गाँव में आँगन और चबूतरों में आज भी सोया जाता है, जो अदभुत आंनद की अनूभुति देता है। खुले आसमान में आँगन में ठंडी हवा, लगता है मानो प्रकृति के करीब आ गए हैं।

गर्मी में दिन निराले होते हैं। घरों में बच्चों को देखते हुए आम रस, कुल्फी, लस्सी और रस आदि बनाने के लिए महिलाएं लगी रहती है। गर्मी के दिनों में शहरों में बाग- बगीचों में घूमने जाना, झूला झूलना और बच्चों की ट्रेन में घूमना, इससे बच्चों को ऐसा लगता है कि सारे संसार की खुशियाँ उन्हें मिल गई है। छोटे बच्चों का साथ पाकर बुजुर्ग भी अपने पुराने दिनों को याद कर लेते हैं।
वर्तमान समय में बच्चों को तनाव बहुत हो गया है। खासकर पढ़ाई में जिस प्रकार आपा-धापी व अति उत्कृष्टता बढ़ बढ़ गई है, ऐसे में ये ख़ुशी के पल तलाशने से भी नहीं मिलते हैं। ऐसे फुर्सत के दिन फिर नहीं आते, इसलिए सभी बच्चों को चाहिए कि अपने बचपन को पूरी तरह जीएं, क्योंकि बचपन के दिन फिर नहीं आते हैं। बड़े- बुजुर्गो का आशीर्वाद बहुत कम मिलता है, क्योंकि सामाजिक दायरे व वर्तमान समय में दिखावटी बातों पर बहुत ध्यान दिया जाता है, जिसके कारण बचपन खोता जा रहा है। अब इस आधुनिक दौर में तो आग बरस रही है, और रोबोट युग है। बच्चों को अब तो सिर्फ मोबाइल ही चहिए, और एकान्तवास में खेल-कूद कम सिर्फ मोबाइल ज्यादा हो गया है। इसलिए आजकल बचपन न जाने कहाँ खो गया है। ऐसा नहीं कि हर कोई चाँदी की चम्मच लेकर पैदा होता हो। यह तो आँखें बिछाए हुए बड़े- बुजुर्ग अभी भी बैठे रहते हैं, पर कोई भी नाती-पोता-पोती अब कहाँ आते हैं ? जो हमारे अपने बच्चे हैं, वह ही हमें भूल गए। जो आँखों के तारे थे, वह ही याद नहीं रखते तो उनके बच्चों से हम क्या आशा करें! गर्मी के दिन में कल की, आज और कल की यही सब बातें मन में आती हैं।
आधुनिकता की जकड़ में हर कोई उलझा हुआ है और इन दिनों हमें फिर वही कहानी याद आती है।