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आए गणपति जी घर हमारे

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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माँ पार्वती के दुलारे, शंकर जी के प्यारे,
आज आए हैं श्रीगणपति जी घर हमारे।

महादेव के हैं ये नंदन, करें हम इनका वंदन,
चढ़ाएं दूर्वा अक्षत, लगाएं हम इनको चंदन।

रिद्धि-सिद्धि के संग में आज हैं ये पधारे,
आज आए हैं श्रीगणपति जी घर हमारे।

कोई एकदंत कहे, कोई कहे चारभुजा धारी,
भारी-भरकम गणेश जी करते मूस की सवारी।

भक्तगण सब कार्य करते हैं इनके ही सहारे,
आज आए हैं गजानन जी फिर से घर हमारे।

कोई कहे लम्बोदर, कोई गिरिजा नंदन,
करतें हैं दुष्टों का ये तो सदा ही मान मर्दन।

इनको जो ध्यावे, करता न कभी वो क्रंदन,
रहो चाहे घर, जंगल या वन उपवन।

लड्डू से खुश होते हैं देव ये मोदक प्यारे,
आज आए हैं गणपति बप्पा घर हमारे।

प्रथम पूजा होती है सारे जग में इनकी,
जो पूजते घर में सुख शांति होती उनकी।

मंगल दायक सदा करते हैं सबका भला,
‘दीनेश’ आज इनका गुण गाने हैं चला।

छोटे-बड़े सबके आराध्य हैं ये तो हमारे,
आज आए हैं गणनायक जी घर हमारे॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।