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बड़ा

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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बड़ा न उसको जानिये,
जिसके उर अभिमान।
झुकते हैं नित ही बड़े,
जैसे झुकती धान॥

बड़ा वही जो जानता,
पर हृदय की पीड़।
देता उसको आसरा,
जिसे मिली ना नीड़॥

बड़ा वही जो देख ले,
अपने भीतर दोष।
औरों के गुण देखकर,
उर में भर ले तोष॥

बड़ा वही है जगत में,
जिसके उर संतोष।
कमी रहे तो जगत में ,
करे नहीं उदघोष॥

बड़ा वही जो कर सके,
दोषों की पहिचान।
औरों में गुण देखकर,
उर से करे बखान॥

बड़ा वही जो धीर से,
सुने सभी की बात।
दिन को तो वो दिन कहे,
और रात को रात॥

बड़ा वही जो देश को,
माने मातु समान।
आये जब बारी कभी,
दे दे हँस-हँस जान॥

बड़ा वही जो ढोर में,
नित देखे भगवान।
प्यासें हों दे नीर वो ,
भूखे हों तो खान॥

बड़ा वही जो रोप दे,
भू पर तरु हर साल।
बचा-बचाकर नीर जो,
परलय देता टाल॥

बड़ा वही जो बाँट दे,
निशिदिन सबमें नेह।
पर अधरों में डाल दे ,
मुस्कानों के मेह॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है। 

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