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राष्ट्रभाषा हिन्दी हो

मालती मिश्रा ‘मयंती’
दिल्ली
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आहत होती घर में माता
गर सम्मान न मिल पाए,
उसके पोषित पुत्र सभी अब
गैरों के पीछे धाए।

हिन्दी की भी यही दशा है
आज देश में अपने ही,
सर का ताज न कभी बनेगी
टूट गए वो सपने ही।

हिन्द के वासी हिन्दुस्तानी
कभी हार ना मानेंगे,
राष्ट्रभाषा हिन्दी हो ये
बच्चा-बच्चा जानेंगे।

आज यही ललकार हमारी,
सब हिन्दी के रिपुओं से।
मान वही हम वापस लेंगे,
था जो इसका सदियों से॥

परिचय-मालती मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘मयंती’ है। ३० अक्टूबर १९७७ को उत्तर प्रदेश केसंत कबीर नगर में जन्मीं हैं। वर्तमान में दिल्ली में बसी हुई हैं। मालती मिश्रा की शिक्षा-स्नातकोत्तर (हिन्दी)और कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप साहित्य सेवा में सक्रिय हैं तो लेखन विधा-काव्य(छंदमुक्त, छंदाधारित),कहानी और लेख है।भाषा ज्ञान-हिन्दी तथा अंग्रेजी का है। २ एकल पुस्तकें-अन्तर्ध्वनि (काव्य संग्रह) और इंतजार (कहानी संग्रह) प्रकाशित है तो ३ साझा संग्रह में भी रचना है। कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य व लेख प्रकाशित होते रहते हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा,हिन्दी भाषा का प्रसार तथा नारी जागरूकता है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-अन्तर्मन से स्वतः प्रेरित होना है।विशेषज्ञता-कहानी लेखन में है तो रुचि-पठन-पाठन में है।

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