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बासी रोटी

भूपिंदर कौर  ‘पाली’ 
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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रात के खाने के बाद से ही बची हुई रोटी इंतजार कर रही थी कि कोई उसे खाये,पर यह क्या! मालकिन ने डब्बे में बंद करके रख दिया। सारी रात सोचते हुए सुबह खटर-पटर से उनींदी आँखों से देखा उसने कि डिब्बा खुला उसमें सबकी पसंद की पूड़ियाँ ‌और आलू के पराठे सजने लगे। वह फिर सबके भार व स्व अपमान के नीचे दबने लगीl सोचने लगी कि हो मैं फिर यहीं रह जाऊँगी,मुझे तो कोई पूछेगा भी नहीं और बाहर कुत्तों को डाल दिया जाएगा। मैं क्या करूँ,मेरी किस्मत ही शायद ऐसी हैl वह सोच ही रही थी कि घर में किसी बुजुर्ग,लगता है दादाजी कुछ कह रहे हैं,मैंने कान देकर सुना।
“अरे भाई,सुनोl मुझे ये पूरी-पराठा बिलकुल नहीं चाहिए। मुझे रात की रोटी हो तो,वही दे दो ताजा मक्खन के साथ।”
अपने पिताजी का आदर करते हुए-“नहीं-नहीं पिताजी ये कैसे हो सकता है। हम सब अच्छे-अच्छे पराठे खाएं,पूड़ी सब्जी खाएँ और आपको रात की बासी रोटी दें,नहीं बिलकुल नहीं।”
“अरे तुम सब लोग नहीं जानते कि,बासी रोटी तो बहुत अच्छी होती है गुणों से भरपूर,जो शुगर वालों के लिए तो बहुत ही नायाब तोहफा है। ये आलू के पराठे,ये फूली-फूली रोटी ये सब पेट के लिए बहुत नुकसानदायक हैl गैस बहुत होती हैl देखो फूली रोटी कैसे फूली नहीं समा रहीl” इतना सुनना था कि आलू का पराठा और पूरी अपना-सा मुँह लेकर रह गए। अब खुशी व अपने स्वाभिमान को बरकरार रखते हुए वह फट से दादाजी की प्लेट में पूरे ठाठ-बाट से इतरा रही थी।

परिचय-भूपिंदर कौर का साहित्यिक उपनाम ‘पाली’ है। जन्म तारीख १ अप्रैल १९५७ तथा जन्म स्थान-पटियाला (पंजाब)है। आपका वर्तमान और स्थाई पता भोपाल (म.प्र.)है। पंजाबी एंव हिन्दी का भाषा का ज्ञान रखने वाली भूपिंदर  कौर एम.ए.और बी.एड. शिक्षित हैं। स्वतंत्र लेखन ही कार्यक्षेत्र है। सामाजिक  गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सक्रियता से जुड़ी हुई हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी,लघुकथा,समीक्षा,बाल साहित्य, हायकु और वर्ण पिरामिड आदि है। प्रकाशन में आपके खाते में-वो हुए न हमारे(कथा संग्रह)है। पंजाबी भाषा सहित अन्य पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाएँ और समीक्षा आदि प्रकाशन हुआ है। इनकी विशेष उपलब्धि-साझा संग्रह-शत हाइकुकार,लघुकथा संग्रह-खंड-खंड जिंदगी और सहोदरी लघुकथा है। पाली की लेखनी का उद्देश्य-स्वांतः सुखाय ही है। प्रेरणा पुंज-पूज्य माता जी हैं। 

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