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बिन डोरी झूल लूँ

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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चाँद के झूले में,
बिन डोरी झूल लूँ
फिर कोई जादू की झड़ी घुमाकर,
सितारों पर जाऊं
कोई प्यारा-सा गीत गाऊँ।

बादलों में कभी उड़ जाऊं,
जमीन से कहीं दूर हो जाऊं
सातों आसमानों की सैर कर लूँ,
ऐसा कोई पंख लगा लूँ।

परियों के देश जाकर,
उनके रूप-रंग चुरा लूँ
कभी फूलों से मिलकर,
उनकी खुशबू तन-मन में भर लूँ।

मछलियों-सी कभी,
जल क्रीड़ा करूँ
गहरे समंदर में जाकर,
एक आशियाना बनाऊं।

एक ऐसा संसार भी बनाऊं,
जहां प्रेम की बोली हो।
तनिक भी दु:ख-दर्द न हो,
चहुँओर खुशियाली॥

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