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सपनों का वतन बनाएंगे

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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हैं साथ साथ हम निर्माणक,
सपनों को वतन बनाएंगे।
हम साथ गढ़े अपनी मंजिल,
सुनहर प्रभात चमकाएंगे।

हम शौर्यवीर पुरुषार्थ प्रबल,
बन क्रान्तिदूत बढ़ पाएंगे।
हम साथ साथ पा अमर विजय,
विश्वास राष्ट्र दे पाएंगे।

सुनहरी किरण नव भारत के,
शुभ उषाकाल हम लाऍंगे।
बन इन्द्रधनुष सतरंगी नभ,
चारु स्वप्न प्रगति मुस्काऍंगे।

मधुमास मृदुल नवजोत भोर,
पुरुषार्थ सबल कर पाऍंगे।
सुनहली किरण शुभ स्वप्न मुदित,
चहुँ भारत विकास हरषाऍंगे।

हरितिमा धरा उद्यम पथ रत,
बन जलज वृष्टि बरसाएंगे।
बन यथार्थ अरुणिम सपने हम,
अभिलाष सफल बन जाएँगे।

सुनहली स्वप्न परहित जीवन,
लालिमा भोर सुख पाऍंगे।
लक्ष्य मात्र सच त्याग तपोबल,
संकल्प पथिक बन पाऍंगे।

रचें स्वप्न उन्मुक्त समुन्नत,
कल्याण सुपथ बढ़ पाएंगे।
हर विपदा तूफान सम्बलित,
हम विघ्नेश्वर बन जाऍंगे।

धीरज साहस पथ रख संयम,
बस लक्ष्य अटल नित जाएँगे।
चहुँ दृष्टि प्रखर बन मूक श्रवण,
सोपान सिद्धि स्वप्न सच पाऍंगे।

नित सोच सटीक रणवीर प्रबल,
निर्माण राष्ट्र शिखर कर पाऍंगे।
बस,लक्ष्य मनुज अर्पण जीवन,
देशभक्ति प्रेम दे पाऍंगे।

खुशनुमा प्रकृति मुस्कान किरण,
शीतोष्ण सुखद मन भाऍंगे।
ज्ञान धर्म अनुसंधान नवल,
सीमान्त शौर्य जय गाऍंगे।

जलपूर्ण सरित सप्तसिन्धु लसित,
तरु वन फिर से लहलाऍंगे।
खिले स्वच्छ चारु पर्यावरण,
सपने मंजिल पहुँचाएंगे।

सोने की चिड़िया फिर भारत,
हम सकल विश्व ललचाएंगे।
विश्वविजेता महाशक्ति बन,
पुनः विश्वगुरु पद पाएंगे।

हम न केवल सपनों का भारत,
सद्भावन समरसता लाएंगे।
जाति सहस्र हैं हम विविध धर्म,
पर,एक राष्ट्र कहलाएंगे।

रख ज़मीर विश्वास कर्मपथ,
बन स्वावलंबी मुस्काएंगे।
ईमानदार इन्सान मधुर,
सुनहली किरण हरषाएंगे।

रखें सुरक्षित पूर्वज वैभव,
धरोहर लाज़ बचाएंगे।
क्षमा दया समता आज़ादी,
संस्कृति भारत लहराएंगे।

करें समादर बलिदान वीर,
नत नमन तिरंग लहराएंगे।
केशर धवल हरितिम नवभारत,
स्वर्णिम स्वप्न देश रच पाएंगे।

भाग्यविधाता जन गण भारत,
हर नारी सबल बनाएंगे।
अमृतोत्सव आजादी भारत,
मिल राष्ट्र गान यश गाएंगे॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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