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बूढ़ी दादी

ऋचा सिन्हा
नवी मुंबई(महाराष्ट्र)
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ये बुज़ुर्गीयत भी एक अभिशाप है,
रूह को तार-तार करती ये कथा है
एक बूढ़ी दादी रहती थी तनहा,
दो बेटे थे-दोनों परदेस
दादी ने पढ़ाया-लिखाया,
लायक़ बनाया
पर क्या पता था कि बेटे,
नहीं रहेंगे देस
वो तो छेद भागेंगे परदेस।
बूढ़ी दादी टकटकी लगाए,
सुबह से रात बैठी रहती अपने द्वार
पर पैसे आते-बेटे ना आते,
और चिट्ठी में प्यार
हर चिट्ठी को पढ़कर दादी,
रोती बार-बार
क्या पता था दादी को,
बेटे हैं उस पार।
जिन बेटों को सींचा उसने,
अब वो हैं पाषाण
इक दिन दादी थक गई,
करते-करते इंतज़ार
सो गई नज़रें गड़ाए,
चौखट के उस पार।
दे गई शिक्षा सभी को,
बुढ़ापा है अभिशाप॥

परिचय – ऋचा सिन्हा का जन्म १३ अगस्त को उत्तर प्रदेश के कैसर गंज (जिला बहराइच) में हुआ है। आपका बसेरा वर्तमान में नवी मुम्बई के सानपाड़ा में है। बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में रुचि रखने वाली ऋचा सिन्हा ने स्नातकोत्तर और बी.एड. किया है। घर में बचपन से ही साहित्यिक वातावरण पाने वाली ऋचा सिन्हा को लिखने,पढ़ने सहित गाने,नाचने का भी शौक है। आप सामाजिक जनसंचार माध्यमों पर भी सक्रिय हैं। मुम्बई (महाराष्ट्र)स्थित विद्यालय में अंग्रेज़ी की अध्यापिका होकर भी हिंदी इनके दिल में बसती है,उसी में लिखती हैं। इनकी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छप चुकीं हैं,तो साझा संग्रह में भी अवसर मिला है।

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