गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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जयंती…
हम जब भी वीणा की धुन के साथ ‘नारायण- नारायण’ सुनते हैं तब अनायास ही श्रीहरि प्रभु विष्णु के अनन्य भक्त,सृष्टि के प्रथम यशस्वी पत्रकार,संगीतकारों के अग्रदूत,वैदिक ऋषि,सदैव भ्रमणशील होने का वरदान प्राप्त,ब्रह्मा जी के मानस पुत्र देव ऋषि नारद जी की याद दिमाग में आए बिना नहीं रहती। इसका एकमात्र कारण है उनका सब समय श्रीमन्नारायण का भजन करते हुए निरन्तर चलायमान रहना। ऐसे त्रिकालदर्शी जिनका देवताओं और असुरों दोनों में पूजनीय स्थान है,का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा वाले दिन हुआ था। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास,पुराण,व्याकरण,वेदांग,संगीत,खगोल-भूगोल,ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है।
सतयुग और त्रेतायुग काल में ब्रह्मऋषि नारद जी ने अनेक महत्वपूर्ण कार्यों में योगदान दिया है जिसमें प्रमुख हैं-माता श्री लक्ष्मीजी का विवाह प्रभु विष्णु जी के साथ,प्रभु शिव जी का विवाह देवी पार्वती जी के साथ,इन्द्र को समझा,बुझाकर उर्वशी का पुरुरवा के साथ परिणय संबंध स्थापित करवाना,महादेव जी द्वारा जलंधर का विनाश करवाना,आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी को रामायण की रचना निर्माण की प्रेरणा देना एवं गुरु महर्षि वेदव्यास जी से भागवत की रचना करवाना इत्यादि। सभी के ध्यानार्थ कि ब्रह्मऋषि नारद जी के ये सभी कृत्य सृष्टि संचालन में बहुत महत्व रखते आए हैं।
सभी जानते हैं कि नारदजी एक जगह टिकते ही नहीं,जिसका कारण है,उनको मिला एक श्राप! राजा प्रजापति दक्ष ने इनको उसके सभी ११ हज़ार पुत्रों को सभी प्रकार के मोह-माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सिखा देने के परिणाम स्वरूप दिया था,क्योंकि इस सीख के चलते ही इनमें से किसी ने भी दक्ष का राज-पाट नहीं संभाला था,लेकिन ब्रह्मऋषि नारद जी ने इस श्राप को भी वरदान के रूप में काम में लेना शुरु कर दिया। यानि एक से दूसरे लोक में विचरण करते हुए सभी वर्गों के सभी प्रकार के कष्टों को प्रभु के समक्ष रख उन समस्याओं का हल निकलवा लाते थे। इसी कारण यानि सभी वर्गों को साथ में लेकर चलने वाले कृत्य ने उनको सभी की दृष्टि में पूजनीय बना दिया।
यह जानकर अवश्य ही आश्चर्य होगा कि देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप उनके मानस पिता बह्राजी ने क्रोध में उस समय दिया,जब उन्होंने पिता की विवाह कर लेने की आज्ञा का पालन करने से ही मना कर दिया।
संत गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड में एक प्रसंग का उल्लेख किया है,जिसके अनुसार प्रभु को जब पता लगा यानि ध्यान में आया कि नारद जी को अहंकार आ गया है कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है,तब उनकी भलाई के निमित्त प्रभु ने अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया,जिसमें एक सुंदर राजकन्या का स्वयंवर दिखाया गया। इसको जान नारद जी ने प्रभु से प्रार्थना की कि उन्हें इतना सुन्दर मुख दे दें,ताकि वह सुंदर राजकन्या उन्हें पसंद कर ले। तब प्रभु ने उनको बंदर का मुख प्रदान कर दिया। जब स्वयंवर में राजकन्या (स्वयं लक्ष्मी जी) ने प्रभु को वर लिया,तब नारद जी ने अपना मुँह जल में देखा तो उनका क्रोध भड़क उठा और आनन-फानन में नारद जी ने प्रभु विष्णु को ही श्राप दे दिया कि उन्हें भी पत्नी का बिछोह सहना पड़ेगा और वानर ही उनकी मदद करेंगे।
देवर्षि नारद को ब्रह्माण्ड का प्रथम पत्रकार कहा जाता है,क्योंकि इन्हें तीनों लोकों में वायु मार्ग द्वारा विचरण करने का वरदान तो प्राप्त था ही,इसलिए ये तीनों लोकों में वीणा बजाते,नारायण-नारायण करते बिना किसी भेद-भाव के सूचना पहुंचा देते थे। भारत के अनेक स्थानों में इस अवसर पर बौद्धिक बैठकें आयोजित होती ही हैं,साथ-साथ संगोष्ठी और प्रार्थना भी आयोजित कर इस दिन को आदर्श मान पत्रकारों को अपने आदर्शों का पालन करने के साथ-साथ समाज के लोगों के प्रति सम दृष्टिकोण और जन हितार्थ की दिशा में लक्ष्य रखने की और प्रेरित किया जाता है।
हमें देविर्षि नारद के सभी उपदेशों का निचोड़ जान लेना उचित रहेगा,जो है-‘सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:।’ इसका अर्थ है- सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए।