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भरोसा उठता जा रहा है मानव से

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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जब से भौतिक विकास ने पश्चिमी सभ्यता की राह पकड़ी, तब से मानवता छिन्न-भिन्न हो रही है। मनुष्यों ने पढ़ाई- लिखाई, भवन, फैक्टरियों, भौतिक सुख-साधनों को बढ़ाया, तब से वह मानवता से दूर होता गया और चला जा रहा है। यह सिलसिला न रुकेगा और न कोई रोक सकेगा।
एक व्यक्ति कन्याकुमारी में जाकर अरब सागर की ओर देखकर कहता है,- यहाँ भारत की सीमा समाप्त और फिर पीछे देखता है, तब कहता है-यहाँ से भारत शुरू।
जबसे मानव ने जन्म लिया है, तभी से उसके पास मन होने से क्रोध, मान, माया, लोभ और हिंसा, झूठ, चोरी जैसी बुराईयों से घिरा है, जबकि उसके पास क्षमा, सत्य, शौच, संयम, त्याग और ब्रह्मचर्य का भी मार्ग खुला है, पर इनको पालन करने में परेशानी महसूस होती है, जबकि ये सरल मार्ग हैं। इसके विपरीत हिंसा आदि को स्वीकारने से परेशानियाँ ही उठानी पड़ती है, सजा भी भोगना पड़ती है।
आज मानव दानव बनने की चेष्टा कर रहा है। उसने अपने भीतर की शांति, सुख को स्वयं नष्ट किया। उसे मानवता को स्वीकारना सुगम है, पर सुगम की जगह कठिन मार्ग पर चलना सरल लगता है। आज कुछ लोग आर्थिक सम्पन्नता से परिपूर्ण होने पर भी शांति-सुख, संतोष नहीं है, ऐसा क्यों ?कुछ बातें सामाजिक होती हैं, जिससे हम अधिक प्रभावित होते हैं। जैसे- पड़ोसी सुखी हैं, तो हम दुखी हैं, क्योंकि वह सुखी है। यदि वह कष्ट में है तो हमें सुखानुभूति होती है। आज धन के अलावा वैचारिक समानता न होने से स्वयं दुखी होकर दूसरों को कारण मानकर उनसे इलाज चाहता है।
आज बहुत विचित्रता देखने को मिल रही है कि, किसी अजनबी से जल्दी दोस्ती, विश्वास कर लेते हैं, पर अपने एकल परिवार में पति को पत्नी, पत्नी को पति ,भाई को बहिन या बहिन को भाई इत्यादि में भरोसा नहीं रहा, जबकि वे वर्षों से परिवार में रह रहे हैं। मात्र वैचारिक एकता न होने से यह समस्या है। बात कहने में सरल पर जीवन में अपनाने या उतारने में कठिन लगती है। इसका मुख्य कारण जीवन को सीमित दायरे में मानकर इतिश्री कर लेते हैं।
हाल ही में एक नवयुवक जिम्मेदार पुलिस निरीक्षक ने पत्नी और बच्चे सहित स्वयं गला काटकर हत्या कर स्वयं आत्महत्या कर ली। कारण मात्र पति-पत्नी के बीच वैचारिक मतभिन्नता का होना रहा। एक फ़िल्मी सितारे की मृत्यु हुई, मरणोपरांत कई प्रकार के समाचार आ रहे हैं, जिसमे पैसों के लेन-देन के कारण हत्या की गई या नैसर्गिक मृत्यु हुई। कहीं अनुपात हीन सम्पत्ति के कारण कार्यवाही हो रही हैं, कहीं अनैतिक संबंधों के कारण हत्या तो, कहीं लोभ के कारण झगड़ा और दुश्मनी। पूरा विश्व यानी मानवीय जीवन, फ़िल्मी जीवन, राजनीतिक जीवन, आर्थिक दौर कमोबेश इन्हीं के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिसका मूल कारण जीवन में धर्म का अभाव या ज्ञान का नहीं होना है। धरम मतलब सदाचार, एक-दूसरे के भावों का आदर करना। आज शिक्षा, ज्ञान का जितना प्रादुर्भाव हुआ, उससे हम सही दिशा में न बढ़ कर हमने अपने जीवन में अज्ञानता बढ़ने से इस प्रकार की घटनाएं प्रमुखता से हो रही हैं।
यह गति रही तो मानकर चलें कि भविष्य बहुत दुखदायक, दर्ददायक, वीभत्स होगा, क्योंकि अज्ञानता के कारण हर मनुष्य इन्हीं बातों से घिरा हुआ है। यह स्थिति कमोबेश हर परिवार की होती जा रही है। ये सब मानसिक रुग्णता का परिचायक है। तनाव, अवसाद, परपीड़ा, उपेक्षा, अपेक्षा, तात्कालिक लाभ के लिए कोई भी सीमा तक जाने को तत्पर होना जिससे कोई न कोई प्रकार की विकृति होने से अपराधी, पापी बन जाते हैं। हमें अपनी सीमा बनानी होगी, अन्यथा जीवन असीमित होने से दुखी होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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