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भाजपा की बेहतरीन जन-वापसी, कई सीख

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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दिल्ली विधानसभा चुनाव- २०२५…

देश के दिल ‘दिल्ली’ में विधानसभा चुनाव (२०२५) के परिणामों ने राष्ट्रीय राजधानी के राजनीतिक भविष्य बनाम दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिया है। लगभग ३ दशक के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ७० में से ४८ सीटों पर एकतरफा बेहतरीन विजयश्री प्राप्त करके स्पष्ट बहुमत अर्थात जनादेश हासिल किया है। सुशासन और विकास के पर्याय कमल के फूल की इस जीत के साथ भाजपा ने आम आदमी पार्टी (आआपा) यानी ‘झाड़ू’ और कांग्रेस यानी ‘पंजा’ दोनों को अपनी सु-रणनीति संग संकल्प से अनुभव एवं अनुमान अनुरूप पराजित किया है।

🔹चुनावी परिणामों का विश्लेषण-
दिल्ली में ११ साल से सत्तासीन आम आदमी पार्टी को इस बार करारी हार मिली है, जिसके लिए नेतृत्व एवं अन्य कारण जवाबदार हैं तो केन्द्र मतलब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर पुन: विश्वास किया जाना भी है। इतिहास के कुछ पन्नों को पलटेंगे तो पता चलता है कि २०२० के विस चुनाव में ‘आआप’ ने ६२ सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की थी, जबकि केन्द्र में सरकार होकर भी भाजपा को मात्र ८ सीट मिली थी। तब कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी। इस समय भी सारे अनुमान अरविन्द केजरीवाल को हरा रहे थे, पर यह जीते और सरकार बना ली। उस अनुभव से ऐसा ही मुगालता इनको इस बार भी था, पर कुल ११ साल में बीते ५ वर्ष में गंदगी, ख़राब सड़कों, शराब, गंदे पानी और झूठ बोलने से सर्वाधिक त्रस्त हुए मतदाता तथा आम आदमी ने इस बार यमुना के गंदे पानी में श्री केजरी ‘वाल’ को गिराने में ही विकास एवं तरक्की को देखा और इसे आगे के लिए समझ भी लिया। यही वजह रही कि इनको शिकस्त एवं भाजपा को जनसेवा हेतु सु-अवसर मिला है।
अब बात २०२५ के चुनाव में ‘आआप’ की सीटों की, तो यह घटकर २२ रह गईं, जो दल के लिए बड़ा एवं समझने लायक झटका है। उधर, कांग्रेस इस बार भी कोई सीट जीतने में असफल रही है, जो संगठन के हर नेतृत्व एवं गाँधी परिवार को स्पष्ट संकेत है।
🔸भाजपा की सफलता क्यों-
◾नेतृत्व की भूमिका-दिल्ली में शुरू से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने व्यापक प्रचार किया, जिससे मतदाताओं के बीच दल के प्रति विश्वास बढ़ा। अपनी बात कही, संकल्प बताया, श्री मोदी ने गारंटी ली तो अन्य दलों का झूठ भी दिखाया। जो बात और योजना सामने रखी, उसे पूरा करने का स्पष्ट इरादा बताकर जिम्मेदारी स्वयं उच्च नेतृत्व ने ली।
◾नीतिगत घोषणाएँ-संगठन की काम करने की परम्परा अनुसार चुनाव से पहले भाजपा ने जमीनी मेहनत की एवं सरकारी विद्यालयों के सुधार, मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं और बिजली आपूर्ति जैसे साफ वादे किए, जो मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रहे। चूंकि, मतदाता अन्य राज्यों में इसे देख चुका है और ‘आआप’ के वादे भी, इसलिए जनता ने भरोसा किया एवं अवसर दिया।
◾मध्यम वर्ग पर ध्यान-ऐसा अनुमान लगता है कि मध्यम वर्ग ने इस बार भाजपा के लिए बजट के बाद ही मन बना लिया था। हाल ही में आए केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग के लिए आयकर में जो कटौती की गई, उससे इस वर्ग के मतदाताओं का बड़ा समर्थन भाजपा को मिलना माना जा सकता है।
🔹‘आआप’ की हार इसलिए-
◾ नेतृत्व संकट-आम आदमी को साथ लेकर सरकार में आए, पर उसी से दूर हुए पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कुछ मामलों में गिरफ्तारी, कानूनी समस्याओं और लगातार झूठ बोलने सहित हर काम में ठीकरा राज्यपाल व प्रधानमंत्री पर फोड़ने सहित भ्रष्टाचार के कारण दल की छवि बहुत प्रभावित हुई। इससे आम व्यक्ति इनसे दूर हुआ है।
◾विश्वास की कमी-पहले कार्यकाल के सारे वादे पूरे नहीं किए, फिर भी जनता ने सिर-आँखों पर बिठाया और दूसरी बार सत्ता की चाबी इनको सौंप दी, लेकिन इस कार्यकाल में भी इन्होंने किए गए वादों को पूरा नहीं किया एवं लगातार आरोपों पर भी विकास की राह नहीं पकड़ी। ताजा परिणाम से संकेत मिलता है कि मतदाताओं के बीच दल के प्रति विश्वास कम हुआ।
◾विपक्षी एकजुटता-भाजपा पूरे साल मैदान में रहती है और हर गलती से सीख लेकर सुधार करती है, जो इस बार दिल्ली का परिणाम बोल रहा है। भाजपा ने शुरू से ही ‘आआप’ के खिलाफ मजबूत विपक्ष के रूप में खुद को प्रस्तुत किया, जिससे ‘आआप’ के मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ, और कांग्रेस तो बहुत पीछे चली गई।
🔹कांग्रेस की स्थिति-
बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि इस चुनाव में कांग्रेस लगातार दूसरी बार दिल्ली विधानसभा में कोई सीट जीतने में असफल रही है। निश्चित ही इस दल के लिए यह बेहद गंभीर एवं निष्पक्ष चिंतन और आत्ममंथन का समय है, कि आखिर गलती कहाँ हो रही है ? उसे समझते हुए पहचानकर अपनी रणनीतियों और नेतृत्व पर संगठन को पुनर्विचार करना होगा, तभी परिणाम बदल सकते हैं।
🔹भविष्य की दिशा का संकेत-
भाजपा की इस प्रचंड जीत के साथ देश की राजधानी एवं दिल ‘दिल्ली’ की राजनीति में नए युग की अच्छी शुरूआत मानी जानी चाहिए। अब भाजपा के सामने अपने वादों-इरादों को पूरा करने की चुनौती है, जो करने पर ही राजधानी इनको अपना सकेगी और जनसेवा का भरोसा कायम होगा। करीब २७ बरस का वनवास काटकर सत्ता पाने वाली भाजपा को नरेंद्र मोदी के वादे और संकल्प अनुसार दिल्ली में विशेषकर शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्रों में जमकर काम करना पड़ेगा। इसके अलावा घोटालों पर निष्पक्ष कार्रवाई करते हुई आम आदमी के जीवन को सुलभता देनी होगी, क्योंकि आपके काम पर जनता ने बदलाव लाकर विश्वास किया है, जो किसी भी क़ीमत पर पुनः खंडित नहीं होना चाहिए।
कहना उचित होगा कि अंततः, दिल्ली के मतदाताओं ने इस चुनाव में हर दल को स्पष्ट सीख दी है और भाजपा को बेहतर जनादेश दिया है। इससे निश्चित ही दिल्ली एवं देश की राजनीतिक दिशा को नए सिरे से परिभाषित किया जाना चाहिए, वरना जो जनता जनार्दन शिखर पर आसीन करती है, वही कुर्सी छीन भी लेती है। इस चुनाव ने साबित किया है कि प्रजातंत्र में हर एक ‘मत’ अर्थात राय का महत्व है। सत्ता के मद में अहंकारी हुई ‘आआप’ को मात्र २ फीसदी मतदान ने ही सत्ता से बाहर करने एवं भाजपा को अंदर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसी कारण आम आदमी पार्टी को २२ सीटों पर ४३.५६ फीसदी मत, भाजपा को ४८ सीटों पर ४५.९२ फीसदी मत एवं कांग्रेस को शून्य सीट पर ६.३६ प्रतिशत मत मिले हैं। यही भारतीय लोकतंत्र और मतदाता की विशेषता है, कि वह मौन रहकर भी बहुत कुछ दिखा देता है।