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भारतीय सभ्यता और संस्कृति

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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चैत्र प्रतिप्रदा आने की ही इंतजारी है,
सांस्कृतिक त्योहार अब मनाने की बारी है।

उपेक्षा मत किया कीजिये इसकी,
विरासतों को भूलना भयंकर भूल है।

उलझे हैं लोग अब भी अंग्रेजी साल में,
भारतीय हृदय में चुभता है हर हाल में।

डूबे हैं पाश्चात्य सभ्यता के रंग में सब,
अपने ही संस्कार पुराने से लगते हैं अब।

संवत दो हजार छियत्तर का इंतजार करो,
छोड़ो अंग्रेजियत भारतीयता को प्यार करो।

सुबह उठकर सूर्य नमस्कार करते हैं,
फिर माता-पिता के चरणों में सिर धरते हैं।

आशीष पाते हैं करोड़ों ही उनसे हम,
पाकर के जीवन को धन्य समझते हैं।

भारतीय संस्कार यही तो सिखाते हैं,
पत्थरों में हमारे भगवान पाये जाते हैं।

डूबता नहीं है सूरज किसी भी दिन अर्घ्य बिना,
भारत में हर दिन त्योहार मनाये जाते हैं।

माँ-बहन-बेटियों को लक्ष्मी कर मानते हैं,
भारत की नदियों को देवी सम जानते हैं।

जहाँ पर्वत की पूजा होती है इन्द्र से पहले,
वहीं पर श्री कृष्ण जी भी दौड़े चले आते हैं।

जाते-जाते अंग्रेजों ने भ्रांतियां फैलायी है,
उनकी अब धीरे-धीरे खुल रही कलाई है।

जुबाँ पर हरदम ही हिन्दी का मान रहे,
मुँह में वन्दे मातरम दिल में हिन्दुस्तान रहे।

हो सके तो सब कुछ स्वदेशी ही अपनाईये,
विदेशी लुटेरों को हिन्द से भगाइये।

तभी तो भारत चोटी पर जायेगा,
और तिरंगा शान से गगन में फहरायेगा॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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