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भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के पक्ष में विदेशों में सामग्री प्रकाशित

वार्ता…

दिल्ली।

विदेश में १८८३ से हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है और विभिन्न देशों में प्रकाशित होने वाले पत्र-पत्रिकाओं में भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के पक्ष में सामग्री प्रकाशित की। बहुत सी पत्रिकाएं वर्षों तक हाथ से लिख कर प्रकाशित की गईं।
‘हिंदी पत्रकारिता के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में नए विमर्श’ पर मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉ. जवाहर कर्नावट (निदेशक, अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल) ने यह बात हिंदी पत्रकारिता के वैश्विक स्वरूप की बहुआयामी पड़ताल करते हुए कही। अवसर रहा १६ जून की शाम को ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता माह- २०२५’ के अंतर्गत आयोजित महत्वपूर्ण संवादमूलक कार्यक्रम ‘हिंदी की वैश्विक पत्रकारिता: विविध आयाम’ का, जिसमें वैश्विक मंच पर हिंदी पत्रकारिता के प्रभाव, समस्याएं, अवसरों और सांस्कृतिक दायित्वों पर गहन विमर्श प्रस्तुत किया। यह सारगर्भित संवाद न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में हुआ, जिसमें त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. आंबेडकर चेयर-पंजाब केंद्रीय विवि, बीआईयू कॉलेज ऑफ ह्यूमेनिटीज़ एंड जर्नलिज्म (बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी) और थाईलैंड हिंदी परिषद आदि संस्थानों की सक्रिय सहभागिता रही।
डॉ. कर्नावट ने डिजिटल माध्यमों, प्रवासी पत्रकारिता, भाषिक विविधता सहित २७ देशों की हिंदी पत्रकारिता से जुड़े पत्र-पत्रिकाओं की प्रतियाँ एकत्रित करने के लिए की गईं विभिन्न देशों की यात्राओं, उन देशों के राष्ट्रीय पुस्तकालयों और अभिलेखागारों में किए गए अपने शोध को विस्तार से बताया।
फाउंडेशन के मप्र समन्वयक अजय जैन ‘विकल्प’ ने बताया कि कार्यक्रम के संचालक एवं सह-वक्ता डॉ. शैलेश शुक्ला (वरिष्ठ पत्रकार, वैश्विक प्रधान संपादक- सृजन संसार) ने वैश्विक पत्रकारिता के तकनीकी, व्यावसायिक और सांस्कृतिक पक्षों की विवेचना करते हुए हिंदी को विश्व मंच पर प्रतिस्थापित करने की रणनीतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रवासी भारतीय समाज में हिंदी पत्रकारिता के योगदान और संभावनाओं की व्याख्या की। आयोजन की मुख्य संयोजक श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला (संस्थापक-निदेशक, न्यू मीडिया सृजन संसार एवं अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन) रही। दुनिया भर से इसमें हिंदीप्रेमी, पत्रकार, शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी ऑनलाइन शामिल हुए।