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बचपन के तराने

सोमा सिंह ‘विशेष’
गाजियाबाद(उत्तरप्रदेश)
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तुमने छेड़े जो फिर से बचपन के तराने,
याद आ गए हमें वो गुजरे ज़माने।

वो आइसक्रीम की फैक्ट्री की धुंधली-सी यादें,
वो तख्ती पर लिखना साथ खड़िया और दवातेंl

वो जोर-जोर से उन पहाड़ों का रटना,
भूल जाने पर जिनको गुरूजी से पिटनाl

वो सोने से दिन थे और हीरे-सी रातें,
कोई लौटा दे मुझको वो सारी सौगातें।

वो गाँधी जयंती पे नारे लगाना,
स्कूल की स्टेज से हकीकत पर कविताएं सुनानाl

कैसे भूले मुझसे वो खूबसूरत अहसास,
गुरूजी की नजर में जगह थी जो खास।

आज फिर से कोई मेरे सर को बुला दो,
मुझे बचपन की वो खास पहचान दिला दो।

वो गर्मी की छुट्टी में नानी के घर में,
मामा-मौसी के बच्चों संग जमघट लगाना।

वो छुपम-छुपाई,जीरो कट्टा के खेल,
वो छत पर बिस्तरों की रेलम-पेलl

वो चूल्हे की रोटी और दाल का स्वाद,
पोथी कम पड़ेगी करूँ गर जो यादl

बस इल्तजा है मेरी फिर से वो सुख दिला दो,
आवाज़ लगा लो,मेरा बचपन बुला दोll

परिचय-सोमा सिंह का बसेरा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में है। साहित्यिक उपनाम ‘विशेष’ है। ५ नवम्बर १९७३ को मेरठ में जन्मी सोमा सिंह को हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। रसायन विज्ञान में परास्नातक सोमा सिंह का कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक) का है। सामाजिक गतिविधि में आप पर्यावरणकर्मी हैं। इनकी लेखन विधा काव्य है। ‘मेरा पंछी'(कविता संग्रह)एवं आखर कुंज (साझा संग्रह)सहित विद्यालय की पत्रिका में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको सम्मान- पुरस्कार में स्वरचित कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला है। ब्लॉग पर भी सक्रिय सोमा सिंह की विशेष उपलब्धि शिक्षण तकनीक,विज्ञान व पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में पुरस्कृत होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज,साहित्य व विज्ञान की सेवा करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तथा प्रेरणापुंज-डॉ. अब्दुल कलाम साहब हैं। देश,साहित्य व विज्ञान की सेवा को जीवन लक्ष्य मानने वाली सोमा सिंह की विशेषज्ञता-प्रेरणादायी कविताएं हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“मैं अपने देश व हिंदी भाषा के समक्ष नतमस्तक हूँ।”

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