दिनेश कुमार प्रजापत ‘तूफानी’
दौसा(राजस्थान)
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जिंदगी की खातिर (मजदूर दिवस विशेष)…..
पेट भरने को मैं इतना क्यों मजबूर हूँ,
तुम मालिक हो और मैं एक मजदूर हूँ।
तन ढकने को वही फटा पुराना लिबास,
कंधे पर पड़े हुए बोझ का है अहसास।
खुले आकाश की धूप और तपती धरती,
ये जिंदगी मुझसे निरन्तर सवाल करती।
गरीबी लाचारी ने मुझे हँसना भुला दिया,
बच्चों के पापी पेट ने भी मुझे रुला दिया।
हाथों में पड़े छाले पैरों में फटी बिवाई है,
तब मुझे दो वक्त की रोटी मिल पाई है।
धधकते हुए सूरज से आँख मिलाता हूँ,
तब जाकर मैं बच्चों का पेट भर पाता हूँ।
पर्वत काट-काट कर मैंने सड़क बनाई,
उसी सड़क पर तुमने गाड़ी फिर दौड़ाई।
सड़क पर नंगे पैर चलने को मजबूर हूँ,
साहब सुविधाओं से दूर एक मजदूर हूँ।
अभावों में पला-बढ़ा, फिर भी भरपूर हूँ,
तुम मालिक हो और मैं एक मजदूर हूँ॥