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मत काटो श्वाँसों की डोर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…

जीवन दाता पेड़ काट मत,
यदि जीवन स्वयं बचाना है
तजो लोभ धन वैभव चाहत,
बस सभी धरा रह जाना है।

जाने कहाँ गए वो दिन शुभ,
वन माधव प्रकृति सुहाना है
मधुश्रावण घनश्याम बरस भू,
सुख शान्ति स्वर्ग कहँ पाना है।

श्वाँसों का नाम पर्यावरण,
ऑक्सीजन स्वच्छ बनाना है
मत काटो श्वाँसों की डोर तुम,
जग-जीवन तभी सुहाना है।

वृक्ष लगाएँ चलो साथ मिल,
जीवन हमें बचाना है
चहुँ ओर धरा खिल हरित-भरित,
फिर पर्यावरण सजाना है।

नदी पर्वत कानन भर तरु जल,
वधू नवल प्रकृति बनाना है
रोगमुक्त जन खुशियाँ भारत,
मुस्कान महक महकाना है।

चहुँदिशि प्रदूषित वातावरण,
हालाहल से बचाना है
स्वार्थ वशी तरु कर्तन अविरत,
खल हिंसक मनुज रोकना है।

तज भौतिक सुख चाहत मानव,
श्वाँस डोर पेड़ लगाना है
निर्मल जलधारा हो सरिता,
जल जीवन कथ्य निभाना है।

माटी लाज़ सदा हरियाली,
दुश्मन भू-खनन मिटाना है
घन अंधेरा वायु प्रदूषित,
जन-जीवन हमें बचाना है।

कोरोना, फंगस रोग विकट,
भूतल से दूर भगाना है
पालन पोषण जन्म-मरण सब,
माँ धरती कर्ज चुकाना है।

कोख धरा उर प्रकृति श्यामला,
रक्षणार्थ वृक्ष लगाना है
शस्य श्यामला हरी-भरी भू,
नद गिरि निर्झर मुस्काना है।

मिले पुनः सुख वैभव खु़शियाँ,
कुसुमाकर विश्व बनाना है
मुस्कान सुमन सुष्मित दुनिया,
मानवता यश फैलाना है।

त्याग शील गुण कर्मवीर बन,
परमार्थ प्रकृति रच पाना है
कुछ लम्हों का सुन्दर जीवन,
ज़न्नत भू प्रकृति बनाना है।

अरुणाभ प्रगति नयी किरण बन,
निशिचन्द्रकला सुख पाना है
अंबर निर्मल पवन शीतल,
अमृत जल निर्झर सरिता है।

प्राणी मानव पशु विहंग जग,
आनंद निनाद शुभ लाना है
आओ वृक्ष लगाएँ मिल-जुल,
दुनिया फिर स्वस्थ बनाना है।

जीवन उत्सव चलो मनाएँ,
पर्यावरण पावन दिवस है।
गाएँ मधुरिम गीत प्रकृति शुभ,
तरु रोपण सफल बनाना है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥