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राष्ट्र प्रेम के अवसर तो अनेक

अरशद रसूल,
बदायूं (उत्तरप्रदेश)
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आधुनिकता की चाशनी में लिपटा परिवेश, भौतिकवादी संस्कृति में डूबा देश का जनमानस,पागलपन की हद तक पश्चिमी सभ्यता की नकल आदि। अगर इस समय हम समाज की स्थिति को देखें तो पूरी तरह से बाजारवाद हावी है। न कोई विचार,न कोई चिंतन और न ही ‘मैं’ से ‘हम’ होने का सकारात्मक प्रयास। मौजूदा दौर में देश का जनमानस राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की जानबूझकर अनदेखी कर रहा है। हालांकि, कथित रूप से राष्ट्रवाद के दावे बहुत किए जा रहे हैं। यदि समाज के किसी भी व्यक्ति से राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों की बात की जाए तो वह सिर्फ इतना जरूर कहता है,-“समय आने पर मैं देश के लिए जान भी दे सकता हूँ।” अब सवाल यह है कि देश से निष्ठा और प्यार जाहिर करने के लिए क्या जान देना ही जरूरी है ? क्या हम देश के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए देश पर बुरा वक्त आने का इंतजार करें ? क्या रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे काम नहीं हैं,जिन्हें करके हम देश के प्रति कर्तव्य और प्रेम को प्रदर्शित कर सकें ?
हकीकत तो यह है कि,देश या समाज के प्रति प्यार जताने के लिए खास मौकों की जरूरत नहीं होती। जरूरत तो सिर्फ सच्चे मन से देश के बारे में सोचने की है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत से ऐसे काम हैं,जिन्हें करके और दूसरों को प्रेरित करके भी राष्ट्र हित में अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकते हैं। हालांकि,ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है जो ऐसे काम करते हैं। मिसाल के तौर पर कितने लोग ऐसे हैं जो बिजली,पानी आदि का दुरुपयोग नहीं करते ? या इनकी बचत के लिए प्रेरित करते हैं ? देश के कितने प्रतिशत नागरिक सरकारी संपत्ति का प्रयोग अपनी व्यक्तिगत संपत्ति मानकर करते हैं ? कितने लोग ऐसे हैं जो अपने आसपास होने वाली राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की सूचना पुलिस या प्रशासन को देते हैं ? अगर इन सब सवालों पर गौर करें तो आसानी से सच्चाई सामने आ जाएगी। यहां तक कि अगर किसी को ऐसे कामों को करने के लिए कहा जाए तो उसका जवाब यह होगा कि हमें ही क्या पड़ी है ? या फिर यह काम पुलिस-प्रशासन का है। हमें पचड़े में पड़ने की जरूरत नहीं है। हालांकि, यह बात भी सही है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसा काम करता है तो उसे गवाही,अदालत, कचहरी के चक्कर लगाने के साथ-साथ आर्थिक और मानसिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके बावजूद क्या हमें अपने उत्तरदायित्वों से मुँह मोड़ लेना चाहिए ?
मौजूदा दौर के इन हालात के लिए हमसे पहले की पीढ़ियों का मौन जिम्मेदार है। हालांकि,हमारा मौन और निष्क्रियता निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय कर देगी। हम उस पीढ़ी के प्रश्नों के उत्तर भी नहीं दे पाएंगे। इसलिए,हमारा फर्ज यह बनता है कि हमें अपने वर्तमान के बजाय भविष्य को उज्जवल बनाने की दिशा में सकारात्मक कोशिश करनी चाहिए। जय हिन्द,जय भारत…।

परिचय-अरशद रसूल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला बदायूं (उ.प्र.)में है। ८ जुलाई १९८१ को जिला बदायूं के बादुल्लागंज में जन्मे अरशद रसूल को हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी, संस्कृत एवं अरबी भाषा का ज्ञान है। एमए, बीएड,एमबीए सहित ग्रामीण विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा,मुअल्लिम उर्दू एवं पत्रकारिता में भी आपने डिप्लोमा हासिल किया है। इनका कार्यक्षेत्र-संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ईविन परियोजना में (जिला प्रबंधक) है। सामाजिक गतिविधि में आप संकल्प युवा विकास संस्थान के अध्यक्ष पद पर रहते हुए समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों के खिलाफ मुहिम, ‘कथित’, संकुचित धार्मिक विचारधारा से ऊपर उठकर देश और सामाजिकता को महत्व देने में सक्रिय होकर रचनाओं व विभिन्न कार्यक्रमों से ऐसी विचारधारा के लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही स्वरोजगार,जागरूकता, समाज के स्वावलंबन की दिशा में विभिन्न प्रशिक्षण-कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। आपकी लेखन विधा-लघुकथा, समसामयिक लेख एवं ग़ज़ल सहित बाल कविताएं हैं। प्रकाशन के तौर पर आपके नाम -शकील बदायूंनी (शख्सियत और फन),सोजे वतन (देशभक्ति रचना संग्रह),प्रकाशकाधीन संकलन-कसौटी (लघुकथा),आजकल (समसामयिक लेख),गुलदान (काव्य), फुलवाऱी(बाल कविताएं)हैं। कई पत्र-पत्रिका के अलावा विभिन्न अंतरजाल माध्यमों पर भी आपकी रचनाओं का प्रकाशन जारी है। खेल मंत्रालय(भारत सरकार)तथा अन्य संस्थाओं की ओर से युवा लेखक सम्मान,उत्कृष्ट जिला युवा पुरस्कार,पर्यावरण मित्र सम्मान,समाज शिरोमणि सम्मान तथा कलम मित्र सम्मान आदि पाने वाले अरशद रसूल ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-बहुधा आकाशवाणी से वार्ताओं-रचनाओं का प्रसारण है। लेखनी का उद्देश्य-रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष तीसरी आँख के रूप में कार्य करना एवं कुरीतियों और ऊंच-नीच को मिटाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर,मुशी प्रेमचंद, शकील बदायूंनी एवं डॉ. वसीम बरेलवी तो प्रेरणापुंज-खालिद नदीम बदायूंनी,डॉ. इसहाक तबीब,नदीम फर्रुख और राशिद राही हैं। आपकी विशेषज्ञता-सरल और सहज यानी जनसामान्य की भाषा,लेखनी का दायरा आम आदमी की जिन्दगी के बेहद करीब रहते हुए सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“भारत एक उपवन के समान देश है,जिसमें विभिन्न भाषा, मत,धर्म के नागरिक रहते हैं। समता,धर्म और विचारधारा की आजादी इस देश की विशेषता है। हिन्दी आमजन की भाषा है, इसलिए यह विचारों-भावनाओं की अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट माध्यम है। इसके बावजूद आजादी के ६० साल बाद भी हिन्दी को यथोचित स्थान नहीं मिल सका है। इसके लिए समाज का बुद्धिजीवी वर्ग और सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं। हिन्दी के उत्थान की सार्थकता तभी सिद्ध होगी,जब भारत में हिन्दी ऐसे स्थान पर पहुंच जाए,कि हिन्दी दिवस मनाने की जरूरत नहीं रहे।”

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