जनभाषा में न्याय का संघर्ष…
मुम्बई (महाराष्ट्र)।
जनभाषा में न्याय का संघर्ष सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच गया है। महाधिवक्ता (बिहार) पी.के. शाही को डांडिक अवमान का दंड दिलवाने हेतु उच्चतम न्यायालय (भारत) में एसएलपी (अपराध) का दाखिला हिंदी में स्वीकृत कर लिया गया है।
महाधिवक्ता श्री शाही के अधीनस्थ विधि पदाधिकारी इंद्रदेव प्रसाद ने पटना उच्च न्यायालय में उनके विरुद्ध ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस १/२०२४ दाखिल किया था, जिसमें उन पर आरोप है कि उन्होंने सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२ /२०१८ की सुनवाई तारीख १६ अप्रैल २०२४ को इनके नाम से आवंटित कुर्सी-टेबल
महाधिवक्ता कार्यालय (बिहार) से हटवा दी। हटवाने के पूर्व इनको कोई नोटिस नहीं दिया, सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया। आदेश की कोई प्रति नहीं दी। पूछने पर उन्होंने बताया कि हमें जो कहना था, उसे मुख्य न्यायमूर्ति के चेंबर में जाकर कह दिया। आपका निष्पादित मामला पुनः सुनवाई पर आ गया। आपके प्रकरण में पुनः दिनांक १८ अप्रैल २०२४ को सुनवाई होगी। आपको जो कुछ भी कहना है-उसी मुकदमे में कहिएगा। उस दिन मैं भी आपके मुकदमे में उपस्थित रहूँगा।
सुनवाई तारीख को उनके ही सामने इंद्रदेव प्रसाद खुली अदालत में बोले कि समादेश याचिका के न्यायिक कार्यवाहियों में बाधा पहुंचाने के लिए विद्वान महाधिवक्ता पी.के. शाही कानून हाथ में ले चुके हैं। इन्होंने कानून हाथ में लेकर मेरे नाम से आवंटित सरकारी कुर्सी-टेबल को महाधिवक्ता कार्यालय से हटवाया है। ये पद में हमसे ऊँचे हैं, किंतु कानून से ऊँचे नहीं है। इनके हाथ भी कानून से बंधे हुए हैं। इन्होंने कानून को तोड़ा है। पहले इनको डाण्डिक अवमान का दंड दिया जाए, जिसके आलोक में पारित पटना उच्च न्यायालय का आदेश (१८ अप्रैल २०२४) को इन्होंने स्वीकार कर उनके विरुद्ध डाण्डिक अवमान ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस १/२०२४ दाखिल किया, जो मुख्य न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन एवं न्यायमूर्ति हरीश कुमार वाली न्याय खण्डपीठ (पटना उच्च न्यायालय के न्यायालय) से खारिज हो गया था, जिसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय (भारत) में भारत संघ की राजभाषा हिंदी में एसएलपी (अपराध) दाखिल हुआ है, जिसके उत्तरवादियों की जमात में वैसे सामाजिक संगठनों का भी नाम समाहित है, जिससे जुड़े हुए अधिवक्तागणों की इच्छा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी में परिवर्तन करने की है। जैसे ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई’ (द्वारा निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता), ‘अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन, दिल्ली’ (द्वारा अध्यक्ष हरपाल सिंह राणा), ‘भारतीय भाषा अभियान, बिहार प्रदेश’ (द्वारा प्रदेश संयोजक परमानंद प्रसाद)।
बताते चलें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३४८ के अनुसार उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है, लेकिन उसी अनुच्छेद के प्रावधान के अनुसार पटना उच्च न्यायालय में हिंदी के प्रयोग की व्यवस्था है, इसलिए श्री प्रसाद हिंदी में आवेदन दाखिल करते हैं और हिंदी में ही तर्क रखते हैं, जो महाधिवक्ता और कुछ न्यायमूर्तियों को पसंद नहीं है, जिसके दंड स्वरूप इनको सरकारी मुकदमों का संचालन करने नहीं दिया जा रहा है, निजी मुकदमों का संचालन हिंदी में करने दिया जा रहा है, जबकि भारत संघ और बिहार राज्य की राजभाषा हिंदी है।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)