कुल पृष्ठ दर्शन : 200

You are currently viewing माँ की बातें…सीख

माँ की बातें…सीख

राधा गोयल
नई दिल्ली
******************************************

माँ के बारे में जितना लिखूँ,कम है। मुझे अपनी माँ की बहुत सी बातें याद हैं। प्यार,हुनर,अक्लमंदी और सीख बहुत याद आती है। आज उन्हीं की शिक्षा के कारण हम ससुराल में अपने दायित्व को पूरी तरह से निभा पा रहे हैं। हमारी माँ को अपने सास-ससुर का प्यार कभी नहीं मिला। हमें कभी याद नहीं आता कि हमें कभी दादा-दादी का प्यार नसीब हुआ हो। हम ३ बहनों का जन्म दादी के घर में हुआ,इसके बावजूद हमारी यादों में उनकी कोई याद नहीं है क्योंकि दादी माँ को इस बात के ताने मारती थीं कि हर समय धीओं (बेटियों) को जन्म देती है। बेटा तो इसकी किस्मत में है ही नहीं। पिताजी भी इस बात को सुनते रहते थे। दादी ने बेटियों को जन्म देने वाली को अपने साथ रखने से मना कर दिया। दादा जी का एक मकान कमला नगर में भी था। पिताजी,माँ और हम बहनें उस घर में रहने लगे। हम ७ बहन भाई हैं। ३ बहनों के बाद १ भाई का जन्म हुआ किंतु ४९ घंटे ही जीवित रहा। एक भाई का २ साल बाद निधन हो गया। दादा जी की एक बेटी गाँव में रहती थी। उसको शहर में बुला लिया और कमला नगर का आधा मकान उसके नाम कर दिया। यहाँ भी हमारी माँ चैन से नहीं जी पाईं। हमारी बुआ ने ताने मार- मार कर,यह कह कह कर कि ‘बेटियों को जनती रहती है और बेटों को खा जाती है’,हमारी माँ का जीना हराम कर दिया। उसके बाद १ भाई,फिर १ बहन और २ भाई हुए लेकिन बुआ के ताने बंद नहीं हुए। बुआ के तानों के कारण माँ बेहद बीमार रहने लगीं। उपन्यास वगैरह पढ़ने में अपना काफी समय व्यतीत करने लगीं।
कहने को माँ केवल दो कक्षा ही पढ़ी थीं,लेकिन इतनी अक्लमंद थीं कि स्नाकोत्तर पास को भी मात दे सकती थीं। पढ़ने की बहुत शौकीन थीं। हमारे यहाँ सभी साप्ताहिक, मासिक,त्रैमासिक व वार्षिक पत्रिकाएँ आती थीं। हम बच्चों के लिए जासूसी उपन्यास ब्राजील के जंगलों में,टार्जन की कहानियाँ, कपालकुंडला आदि आते थे। पिताजी भी पढ़ने के बहुत शौकीन थे। माँ घर के सारे काम करने के बावजूद भी बहुत किताबें पढ़ती थीं। सिलाई-कढ़ाई बुनाई में भी बेहद दक्ष थीं। पाक कला की इतनी निपुण थीं कि तरह-तरह के लाजवाब व्यंजन बनाती थीं।
हमारी १ मामी की मृत्यु हो गई थी। उनके ४ लड़के और ३ लड़कियाँ थीं । आठवीं संतान (पुत्री) को जन्म देने के समय उनकी मृत्यु हो गई थी। उस पुत्री को किसी ने गोद ले लिया था। मामा जी के बच्चों की देखभाल भी हमारी माँ के जिम्मे आ गई थी। वह घर का सारा काम निपटा कर मेरे छोटे भाई को साथ लेकर मामा जी के यहाँ जाती थीं। वहाँ का सारा काम निपटाती थीं। ७ बच्चे मामा के और हम ७ बहन-भाइयों के लिए कपड़े सिलना, स्वेटर बनाना,बीमार पड़ने पर चिकित्सक के पास ले जाना जैसे सारे काम माँ अकेले करती थीं।
हम चारों बहनों का विवाह हो गया तो छुट्टियों में हम चारों बहनें मायके जाती थीं। खाने-पीने की हमारे घर में कोई कमी नहीं थी। माँ ढेर सारी मट्ठियाँ बना कर रखती थीं। माँ को तरह-तरह के अचार डालने का बहुत शौक था। छुट्टियों में हम सब बहनें व हमारे बच्चे इकट्ठे मायके में रहने जाते थे। माँ कम से कम २० किलो दूध की खीर बनाती थीं। ६ कनस्तर १० किलो वाले…घर का आटा और देसी घी घर से देकर अपने सामने बिस्किट बनवाती थीं। हम सब बहन भाई एक ही बार में बैठकर आधा कनस्तर साफ कर जाते थे।
माँ कितनी अक्लमंद व दूरदर्शी थीं,उसके बारे में एक बात बताना चाहूँगी-मेरी बड़ी बहन को पोलियो हो गया था। वह तब हुआ था जब माँ,दादी के घर में रहती थीं। मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है। मैं बहुत छोटी थी। माँ के मुख से ही हमने सुना हुआ है कि जब वो अस्पताल जाती थीं तो मेरी छोटी बहन की इतनी बेकद्री होती थी जिसका कोई हिसाब नहीं है और माँ को गालियाँ भी खूब सुननी पड़ती थीं कि ‘लड़की जात की सेवा कर रही है। मरती है तो मरने दे,लड़की ही तो है’ लेकिन माँ ने ठान लिया था कि इसको ठीक करके रहूँगी। हमारी दादी का यह हाल तो तब था जबकि उनकी खुद की ६ लड़कियाँ हैं। हमारे चाचा,ताऊ जी के पहले लड़के हुए तो उनकी पत्नियों को सम्मान मिला और हमारी माँ को हमेशा अपमान मिला।
मेरी पोलियोग्रस्त बहन का माँ ने पूरा इलाज कराया और उसको घर के सारे काम सिखाए। यहाँ तक कि सिलाई भी। मेरी बहन सिलाई में इतनी दक्ष थी कि वह पैण्ट तक सिल लेती थी। जब उसका विवाह हुआ तब माँ ने इस बात को छुपाया नहीं कि मेरी लड़की को बचपन में पोलियो हुआ था। उनकी सोच थी कि बाद में वह बेटी को छोड़ दें,उससे बेहतर है कि,सारी बात बता दी जाए। किसी परिचित ने रिश्ता बताया था। उसके घर में मेरी बहन को देखने दिखाने का कार्यक्रम हुआ। माँ ने स्पष्ट कह दिया कि अपने सामने पहले खाना बनवाकर भी देख लो और सिलाई करवा कर भी देख लो। सोचो…कितना मुश्किल है कि ससुराल वाले सामने बैठे हों…उनके सामने खाना बनाना और सिलाई करना…लेकिन मेरी बहन ने खाना भी बनाया…उनके सामने पैण्ट काटी व थोड़ी सिलाई भी की। उन्हें तसल्ली करवा दी कि लड़की घर के सारे काम कर सकती है। मेरी बहन का दायाँ हाथ अपने-आपसे ऊपर नहीं उठता था। बाएँ हाथ का सहारा देकर उठाना पड़ता था,लेकिन घर के सारे काम कर लेती थी। इतनी सुंदर थी कि यदि अपनी बहन की मधुबाला से तुलना करूँ तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
हमारी माँ हम बेटियों को इसलिए नहीं पढ़ा पाईं …क्योंकि मेरे दादा-दादी इसके सख्त खिलाफ थे। माँ के मन में दादी का खौफ बहुत अधिक समाया हुआ था।
मुझे अपनी माँँ के और कई किस्से याद आ रहे हैं- मेरे देवर की शादी थी। मेरी छोटी बेटी उस समय ढाई माह की थी। घर की सबसे बड़ी बहू होने के कारण मेरे ऊपर घर के काम की बहुत जिम्मेदारी थी। उस जमाने में नौकर-चाकर नहीं लगाए जाते थे। खासकर मेरे ससुराल में तो मतलब ही नहीं था क्योंकि मेरे पति और मेरा देवर ही कमाते थे। देवर के विवाह के पश्चात ज्यादा भाग-दौड़ के कारण मुझे लगातार रक्त स्राव होता रहा,जो रुकने का नाम नहीं ले रहा था। कई दिन तक तो बर्दाश्त किया, जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो अस्पताल में दिखाया। एक छोटा-सा ऑपरेशन करने की सलाह दी गई। यह होली के बाद की बात है। माँ मुझे अस्पताल में देखने आईं। पति से बच्चों का हाल-चाल पूछा। उन्होंने बताया कि सब ठीक है,बस बड़की उठती है और गिर जाती है। बुखार हो गया था तो शायद उससे बहुत कमजोरी हो गई है। तब तक माँ मेरे ससुराल में एक बार भी नहीं आईं थीं लेकिन उस दिन वह मेरे पति के साथ मेरे ससुराल गईं। मैं अस्पताल में दाखिल थी। छोटी बेटी और बड़ी बेटी घर पर थीं। माँ ने अपनी नातिन को अपने पास आने के लिए आवाज लगाई। वो उठी और एकदम गिर पड़ी। माँ ने मुँह से कुछ नहीं कहा। बस मेरे पति को एक ही बात बोली कि इसे फौरन अस्पताल में दिखाओ। पति मेरी माँ की बहुत इज्जत करते थे और करते हैं। माँ की बात मानकर उन्होंने बेटी को अस्पताल में दिखाया। पता लगा कि बेटी को पक्षाघात हुआ है। चिकित्सक कहा इसे कम से कम २० घंटे सुलाना है। मेरी ससुराल में तो इतनी जगह ही नहीं थी कि बेटी २० घंटे सो सके। माँ ने मेरी सास से डरते-डरते कहा कि आप कहें तो मैं इन दोनों बच्चियों और इनकी माँ को अपने साथ ले जाऊँ ? शुक्र है सास ने हामी भर दी,क्योंकि मेरे ससुराल में तो आने-जाने वालों का बेहद तांता लगा रहता था और जब बच्ची बीमार है,जाहिर सी बात है कि आने-जाने वालों का तांता और ज्यादा लगा रहेगा। माँ की मेहनत और अक्लमंदी का ही नतीजा है कि मेरी बेटी ठीक हो गई। यदि मेरी माँ समझदार नहीं होती तो आज मेरी बेटी शायद ठीक न होती।
माँ के जीवित रहते ही उनकी २ जवान बेटियों व १ पुत्रवधू का निधन हुआ। माँ ने ही दोनों दामादों से पुनर्विवाह करने का अनुरोध किया। मेरी वो दोनों बहनें आज तक मेरे मायके हर सुख-दु:ख,तीज त्यौहार व भाई-बहनों के बच्चों के विवाह में आती हैं। यह माँ की समझदारी के कारण ही संभव हो सका।
मेरी मंझली भाभी की जिस दिन मृत्यु हुई,तब माँ बहुत बीमार थीं। बिस्तर से हिल भी नहीं पाती थीं। मंझली भाभी को उच्च रक्तचाप था और माइग्रेन था। उन्हें आराम मिल सके इसलिए अस्पताल में दाखिल करा दिया था,लेकिन वहाँ से उनका मृत शरीर वापस आया। माँ बोल नहीं पा रही थीं लेकिन जब मेरी भाभी की अर्थी को लेकर बाहर निकले तो माँ के आखिरी शब्द थे… मममममममनीनीईईईईईषाआआआआ और गर्दन एक तरफ लुढ़क गई। उस दिन उस घर से १ नहीं, २ अर्थियाँ एक घण्टे के अन्तराल में निकलीं।
माँ तुम्हारी हमेशा बहुत याद आती है। आज तुम और पिताजी तो नहीं रहे,लेकिन हम चारों बहनें हर त्यौहार पर पहले की तरह अपने मायके जाते हैं।
आज हम सब बहनें माँ की दी हुई शिक्षा के कारण ही अपने ससुराल में सबकी चहेती बनी हुई हैं।

Leave a Reply