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मेरे शब्द बन जाते हैं मीत

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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मेरा हर शब्द मुझसे एक रिश्ता बनाता है,
मेरे शब्द-
कभी रूठते हैं,कभी मान जाते हैं
कुछ शब्द हो जाते हैं-माँ जैसे कोमल,
कुछ बन जाते हैं-
पिता की भांति कठोर,गहन अर्थों से परिपूर्ण
कुछ बन मेरे सखा,संग-संग करते हैं अठखेलियाँ।
कुछ बन जाते हैं,बचपन के मीत से,
मासूमियत के गीत से
कुछ शब्द मन में,घर कर जाते हैं,
यादों की नगरी में,कहीं दूर ले जाते हैं
कुछ शब्द बनते हैं,मील का पत्थर,
जो स्वयं को मिटाकर,अमर गाथा रच जाते हैं।
कुछ शब्द होते हैं-हृदय का सुकून,
और कुछ गहरे घाव दे जाते हैं
कुछ लगते हैं प्रियतम जैसे प्यारे,
कुछ जीवनसाथी से हो जाते हैं।
कुछ होते हैं फूलों जैसे-
घर उपवन व मन को महकाते हैं।
मेरे कितने ही सवालों के,
जवाब दे जाते हैं यह शब्द
यह सभी शब्द मुझे मेरे अपने से नजर आते हैं…॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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