बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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इस माटी की चरण वन्दना,
हम सब मिलकर गाते हैं।
अश्रु नीर से पग प्रक्षालन,
माथे तिलक लगाते हैं॥
वसुंधरा माँ के आँचल को,
आज सँवारें मिल करके।
गुलशन-सा महके हर-हर कोना,
छाय बहारें खिल करके॥
ताल सरोवर भरे लबालब,
सूरज नया उगाते हैं।
इस माटी की चरण वंदना...
हरी-भरी ये प्यारी धरती,
सबके मन को भाती है।
हमें बचाओ मेरे बच्चों,
कहकर हमें बुलाती है॥
मैला आँचल कभी न होवे,
चन्दा-सा चमकाते हैं।
इस माटी की चरण वंदना...
पालन करती है जन-जन का,
सबको अन्न खिलाती है।
गंगा की निर्मल जल धारा,
प्यासों को पिलवाती है॥
करते इसकी हैं आराधन,
ऋषि-मुनि महिमा गाते हैं॥
इस माटी की चरण वंदना...