शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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जन-जन में व्यापित हैं खुशियाँ,शरद सुहावन बेला है,
हुआ आगमन शीत ऋतु का,ये मौसम अलबेला है॥
शीतल मस्त हवाएं मन को,इक अहसास कराती हैं,
ऐसे में सहचर की यादें,मुझको बहुत सताती हैं।
आँखों में बीते लम्हों के,स्वप्न तैरने लगते हैं,
मन में उठती है तरंग जब,याद सजन की आती है।
कैसे पहुँचूँ पास पिया के,साजन आज अकेला है,
जन-जन में व्यापित हैं खुशियाँ…॥
दिनकर ने प्राची में आकर,कितना सुंदर काम किया,
शीत ठिठुरती काया को इन,किरणों से आराम दिया।
खिला खिला है सारा उपवन,कलियाँ सारी महक रही,
तभी भ्रमर ने गीत सुरीला,गुन-गुन कर के सुना दिया।
रंग-बिरंगी उड़ें तितलियाँ,लगा हुआ जस मेला है,
जन-जन में व्यापित हैं खुशियाँ…॥
खेतों में हरियाली छायी,सरसों फूल रही न्यारी,
पीली ओढ़ चुनरिया दुल्हन,घूम रही क्यारी-क्यारी।
दूर कहीं चरवाहे ने इक,गीत सुहाना गाया है,
मधुर मधुर लहरी कानों में,गूँज रही प्यारी प्यारी।
नील गगन से बरसें किरणें,क्या कुदरत का खेला है,
जन-जन में व्यापित हैं खुशियाँ…॥
बना गोंद के लड्डू खाओ,किसने किसको रोका है,
तन पर हो परिधान गर्म बस यही मिला इक मौका है।
चाट पकौड़ी गरम समोसा,चाय कचौड़ी हो चटनी,
ओढ़ रजाई बैठ बेड पर,हुक्म रसोई ठोंका है।
मस्त रहो प्यारे सर्दी में,कोई नहीं झमेला है,
जन-जन में व्यापित हैं खुशियाँ,शरद सुहावन बेला है॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है