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यह कैसी टीस!

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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बिन शोलों के चुभन-सी होती है,
बिन जख्मों के ही होती है पीड़ा
क्षण-क्षण दायित्व का बोझ झकझोरे,
बिन उठाए कोई दायित्व का बीड़ा।

      तमाम उम्र के सिलसिले में, अब क्यों,
      हर भाव गरियाने से लगते हैं ?
      कदम-कदम पर मृग तृष्णा से,
      क्यों, हर सपने ठगाने से लगते हैं ?

जब था न कुछ पास इस जिंदगी के,
तब हम कितने बेखबर, मालामाल थे ?
आज होकर पास भी अपने सब-कुछ,
क्यों लग रहे हैं, आप-हम कंगाल से ?

   कुछ नहीं है यह जीवन उमंग भरा,
   जहां कभी अपनों की ही तरक्की की रीस है
   जीवन की इस संध्या में आज अब,
   छूटती हर शय की यह कैसी टीस है ?

देह की दहलीज अब सूनी-सी रहती है,
क्यों आता न अब कोई बुलाने वाला ?
शेष रह गया है आज भी भाव क्यों ?
हृदय के कोने में वह सताने वाला।

         शिथिल श्वाँस अब हो रही है,
         उष्मित भावों की दरकार कहां ?
         जीवन नदी के कूलों पर खोज रहा हूँ,
         क्यों, आते न मिलने सरकार यहां ?

अनगिनत सवाल है,
घना बवाल है।
यह मायाजाल है, बड़ा कमाल है,
बस जी रहा हूँ मृत्यु की प्रतीक्षा में॥

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