कुल पृष्ठ दर्शन : 20

You are currently viewing ये गर्मी! और चाह, जो खत्म नहीं होती…

ये गर्मी! और चाह, जो खत्म नहीं होती…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
************************************

“सूरज चाचा इतने क्यों गर्म हो रहे हो। थोड़ी राहत तो देदो। अभी तो शुरूआत के कुछ ही दिन हुए हैं। आपका यह रौद्र रुप हम सभी को डरा रहा है।” अब इस चिलचिलाती गर्मी का यह दौर मानो मौसम में कड़वाहट ला रहा है। तपन से तो पूरा वातावरण अंदर भी और बाहर भी सब जगह एक जैसा हो रहा है। हर कोई परेशानी में ही नहीं, बल्कि तापमान की इस तपन से जल रहा है। सुबह सूरज की पहली किरण भौर होती है, तब थोड़ी-सी राहत, उसके बाद तो आग के गोलों से प्रहार करते हैं सूर्य देवता। मानो वह अपने रथ पर सवार होकर पृथ्वी भ्रमण कर रहे हों। मनुष्य हो या पशु-पक्षी इस गर्मी से सबके-सब परेशान हो रहे हैं। हम लोग तो दिनभर पानी पी-पी कर प्यास बुझा रहे हैं, और प्यास बुझने का नाम ही नहीं ले रही है। पसीने का अपना ही स्तर है, निरंतर बह रहा है, वह भी धाराप्रवाह बह रहा है। शाम होते-होते थोड़ी राहत जरूर मिलती है, पर वह भी अस्थाई ही मानो। बाज़ार में ठंडे समय में बर्फ के गोले, कुल्फी, आईसक्रीम, गन्ने का रस, नींबू पानी, शिकंजी जल-जीरा और केरी के पने वालों के ठेले-खोमचों की बहार देखने को जरूर मिलती है। ऐसे तो बाजार में ठंडा पेय भी नये जमाने के पेय पदार्थों में उपलब्ध है, पर इस मौसम में वह भी तूफानी उछाल जरूर दिखाता है। ठंडा यानी, इसका भी अपना ही मज़ा है। इस गर्मी के मौसम में हमारी चाह और भी होती है कि हम ए.सी., कूलर व पंखों की ठंडी हवा में बंद रहें। घर हो या आफिस, ये हमारी जरूरत हो गई है। अरे गर्मी में तो भोजन में भी लोग रायता, दही, छाछ, और साथ में लस्सी, श्रीखंड मिष्ठान में पसंद करते हैं, जिससे शरीर का ताप कम हो, पर हमारी चाह इतनी ज्यादा हो गई है कि जरूरत बढ़ने के साथ-साथ अब तो गर्मी भी ज्यादा बढ़ गई है। इस मौसम में फ्रूटी की चुस्की के साथ रसना का भी अपना एक अलग आनंद है, पर अब जब घर से बाहर निकलते हैं, तो ड़ाकू बन पूरे मुँह को कपड़े से ढक कर जाना पड़ता है। मानो गर्मी की तपन सीधे आपके मुँह पर आ रही हो। ऐसे में घर-परिवार वाले भी पुराने जमाने से चल रहे नुस्खे बताते रहते हैं। जैसे प्याज़ रख लो, केरी का पना पी लो, घर से निकलते वक्त पानी की बॉटल रख लो। मानो, सारे नुस्खे हमारे ऊपर ही आज़मा रहे हैं घर वाले। गर्मी है तो इससे बचाने के लिए लोगों की चाह भी है। नहीं तो घर बैठे मुश्किल हो जाती है। बीमारियों की जकड़ में आदमी आ जाएगा, तो फिर उसे दवाखाने और डॉक्टर के पास जाना ही है। इसलिए गर्मी में जितना खाने-पीने का ध्यान दिया जाएगा, वह ठीक होगा। नहीं तो बीमारी की चपेट में आ जाएंगे तो लेने के देने पड़ जाएंगे, क्योंकि यह सब मौसम का ही जादू है।
ऐसे में तो कहीं ठंडी जगह हिल स्टेशन घूमने जाया जाए, जिससे तपन से राहत मिले, क्योंकि ऐसे गर्मी के गरम मौसम में पूरा शहर जलता है। गाँव, खेत-खलिहान बाग-बगीचे सब जगह लू का असर होता है। इस भीषण गर्मी का दौर, जिसने पूरी धरती को गर्म कर दिया है। सूरज के तेवर ऐसे तानाशाह कि क्रूर तपन से हमें डरा रहा हो। फिर भी चाह जो खत्म नहीं होती है। घर के अंदर से श्रीमती जी कहती हैं-“मुन्ने के पापा शाम को घर आते वक्त मनसुख लाल हलवाई की दुकान से रसगुल्ले या राजभोग ले आना, और थोड़ी रबड़ी तो आमरस बना कर उसमें डाल दूंगी। बच्चों को पसंद है।”

देखो सूरज चाचा, तुम्हारी तपन में भी यह अपने आनंद-उल्लास को ढूंढ लेते हैं। हाय! गजब की गर्मी है।