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आए दिन बरसात के

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आए दिन बरसात के, फैला चहुँ आनंद।
रिमझिम रिमझिम बारिशें, खिले पुष्प मकरंद॥

आए दिन बरसात के, हरितिम हुआ निकुंज।
राहत आहत तपिश से, फैला चहुँ खग गुंज॥

महकी खुशियाँ चहुँ दिशा, भीगे तन बरसात।
हरियाली सुष्मित धरा, बरसे घन दिन रात॥

बरसे सावन की घटा, जगी मिलन मन आश।
सजन विरह ढांढस बँधे, आये प्रीतम काश॥

महके तन मन गुलबदन, भींगे चारु उरोज।
खोयी-खोयी प्रियतमा, बाट जोहती रोज॥

लौटा बचपन सुनहरा, भीगे छप-छप बाल।
मौसम सुन्दर बारिशें, जन-जीवन खुशहाल॥

खिले बदन आहत कृषक, देख मेघ आकाश।
सावन की बरखा प्रथम, बहुल उपज मन आश॥

आए दिन बरसात के, भरे सरित तालाब।
टर्र-टर्र बादुर बजे, बाढ़ग्रस्त सैलाब॥

आए दिन बरसात के, कठिन समय है दीन।
बेघर भीगे जन वतन, बहुतायत श्रीहीन॥

आए दिन बरसात के,चहुँ दिक हाहाकार।
आया जलप्लावन विकट, जान माल संंहार॥

कहीं खुशी पा बारिशें, कहीं विपद चहुँ बाढ़।
आप्लावन गिरि भू स्खलन, जल वर्षण आषाढ़॥

कर्तन गिरि सरिता विपिन, प्रकृति दिखाती रोष।
भौतिक सुख चाहत विकट, केवल मानव दोष॥

समझ प्रकृति चेतावनी, लाओ सोच सुधार।
बन्द करो कर्तन प्रकृति, पेड़ लगाओ यार॥

रोको कुदरत का कहर, चलो लगाएँ वृक्ष।
बरसेगी खुशियाँ पुन:, भू व्योम अंतरिक्ष॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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