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रति नहीं तुम,सती नहीं तुम

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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रति नहीं तुम,सती नहीं तुम
प्राण हो,ह्रदय गति नहीं तुम,
संग सिया-सी हर घड़ी तुम-
संकट में पीछे हटीं नहीं तुम।

गृहिणी नहीं,वामांगिनी हो
संगिनी नहीं,सहगामिनी हो,
वधु नहीं सहधर्मिणी हो तुम-
दिति हो मात्र छवि नहीं तुम।

हो परछाईं उर बंधन की तुम
कुंदन से जैसे चंदन-सी तुम,
लिपट समां महकाए मुझको-
पुष्प हो,भंवरा गति नहीं तुम।

आर्या-सी भार्या हो संकट में
वामा बन जामा हो अंधड़ में,
हो ढाल मेरे प्राणों की प्यारी-
प्रणयिनी हो,हटीं नहीं तुम।

अर्धांगिनी अर्ध देह मेरी तुम,
हो जीवन प्रीत स्नेह मेरी तुम।
नेह जलाए शब्द दीप कवि ने,
कविता तुम,पर कवि नहीं हम॥

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