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‘रामरस’ की अपार महिमा

डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
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भाग १…

सर्वप्रथम आप सबको नववर्ष की आरोग्यदायिनी शुभकामनाएँ।

बीत रहे साल की संध्या और नए साल की प्रभातबेला का जश्न बस हमारे घर की दहलीज पर खड़ा है। अब इस मौके पर मैंने भी अस्पताल जाने वाले हमेशा के मार्ग को छोड़कर अलग ही पगडण्डी खोजने का फैसला किया। जब कुछ नया कर गुजरने की ठान ली, तब नवविचारों की नैया ने डोलते-डोलते अचानक स्वल्प विराम लिया। केबीसी-२०२४ का एक भाग नजर के समक्ष आया। ‘बाल दिवस’ के उपलक्ष्य में एक वयस्क बुद्धिजीवी बालक के रसोईघर में किए कारनामों की झलक परदे पर दिखने लगी। उसकी गहन इच्छा के अनुसार उसके प्रेरणास्त्रोत रसोईराजा साक्षात संजीव कपूर उससे ऑनलाइन मिलने पहुँचे। जहाँ सबके उत्साह का ज्वार उफान पड़ा, वहीं उस बालक (?) ने उनसे एक ऐसा सवाल किया जो रसोई में कदम रखने का जिनका शायद प्रथम अवसर हो, उन तमाम नववधुओं के भी मन में आता है। बालक ने कपूर जी से पूछा, “सर, स्वादानुसार नमक मतलब कितना ?”
यह यक्ष प्रश्न मुझे मेरी रसोई के नवजात सफ़र में हैरान कर देता था। यहाँ ‘चम्मच’ नामक वस्तु का परिमाण उपयोग होने पर अधिकतर अन्न पदार्थ खारे हो जाते! सो, चम्मच की आवश्यकता रसोई से अधिक राजनीतिक परिवेश में अधिक है, यह परम ज्ञान प्राप्त करने में मुझे अधिक समय नहीं लगा। इसका विश्लेषण करते हुए मुझे एक छपा हुआ चुटकुला याद आया, जिसमें एक गंभीर सन्देश छुपा हुआ था।
मित्रों, चिकित्सक मरीज को दवाई का परिमाण (डोज) समझा रहा है, “१० दिनों तक १-१ गोली दिन में २ बार लेना।” यह संदेसा सुनने के बाद अलग-अलग मरीजों की अलग-अलग ३ प्रकार की प्रतिक्रियाएं (मन की बात के रूप में) होती हैं-
🔹”अब ये १० दिन गोलियों के चक्कर में फंसने की बजाय एक शार्ट कट ठीक है। १ गोली दिन में ४ बार लेकर ५ दिन में मामला निपटा दूंगा।”
🔹”यह डॉक्टर मेरे बेहाल शरीर की विपदा कहाँ समझ पाएगा ? ये गोलियाँ गर्म होती हैं। मैं तो बस दिन में १ ही गोली खाऊंगा।”
🔹”डॉक्टर ने जो कहा है, उसे ध्यान में रखना मेरा काम है। पूरा डोज ठीक से लूंगा, तभी समय पर चंगा हो जाऊंगा। “
(आप ही तय कीजिए आपको कौन-से नम्बर पर रहना उचित लगता है! यह जो दवाइयों का उदाहरण मैंने दिया है, वह इसलिए कि, मुझे दवाइयों के अलावा अधिक सूझता नहीं है। यह मेरे पेशे का विपरीत प्रभाव ही समझ लीजिए।)
अब बताइए, २ वक्त का नमक (रामरस) एक ही समय की सब्जी में डाला तो ? या उसकी एक चुटकी डालने की बजाय आधी चुटकी डाली तो ? एकाध बार बिना नमक की सब्जी बन गई तो उस पर ऊपर से नमक छिड़कने का विकल्प होता है, परन्तु उसमें अधिक मात्रा में नमक हो तो खाने का मज़ा किरकिरा हो जाता है (अब इस अवस्था में भी कुशल गृहिणियों ने कुछ नुस्खे अपनाए हैं)।
एक विकट परिस्थिति होती है, जब घड़ी के काँटों से प्रतिस्पर्धा करती गृहिणी घरवालों की रूचिनुसार गैस की २ सिगड़ियों पर २ अलग-अलग सब्जियाँ बनाने पर विवश हो जाती है। तब कभी- कभार एक सब्जी में दुगुनी मात्रा में और दूसरी में कुछ नहीं, ऐसा नमक पड़ जाता है (मेरी आप-बीती याद आई)। अब नमक के बारे में एक नाटक का स्मरण हुआ। प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर के १ विश्व प्रसिद्ध नाटक में किंग लियर की सबसे छोटी लड़की अपने पिता को बिना नमक का खाना खिलाती है और कहती है,”पिताजी, मैं आपको सारी दुनिया में जितना नमक है, उतने नमक के जितना प्यार करती हूँ!”

हम सब नववर्ष के प्रारम्भ में मन में कुछ संकल्पनाएँ करते हैं अग्रिम वर्ष के लिए (कुछ मान्यवर यही संकल्पनाएँ हर वर्ष दोहराते हैं)। उपरोक्त वर्णन पढ़ने पर आप जान गए होंगे, कि सुडौल शरीर की तरह ही संतुलित नमक भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। उसके लिए हमें दोबारा ‘एक चुटकी भर नमक की कीमत’ आँकने की नए सिरे से आवश्यकता नहीं है। हम सभी प्रसिद्ध जोशीले ‘नमक सत्याग्रह’ को भली-भांति जानते हैं, जो स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। आवश्यकता से अधिक नमक का सेवन उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, गुर्दे के विकार, अम्ल-क्षार असंतुलन, शरीर में सूजन आदि विकारों को जन्म देता है। मित्रों, हमारी रोजमर्रा की सब्जियों में नमक के अलावा अचार, पापड़, चटनी, विभिन्न जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड आदि में भी उच्च मात्रा में नमक होता है। वह इसलिए, कि यहाँ इसका उपयोग पदार्थ के सुरक्षा कवच के रूप में किया जाता है। इसके अलावा भोजन के थाल के बायीं ओर शुद्ध नमक परोसने की भी परंपरा है। क्या इन सभी में नमक की मात्रा कम की जा सकती है ? सभी से अपील करती हूँ, कि ‘नमक के सेवन में कटौती’ करने के उपायों को वर्ष २०२५ के संकल्प में जोड़ें।(प्रतीक्षा कीजिए अगले भाग की…)