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राष्ट्र को समर्पित ‘अटल’ जीवन यात्रा

ललित गर्ग

दिल्ली
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‘अजातशत्रु’ अटल जी…

भारतीय राजनीति का महानायक, भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता, भारत रत्न, प्रखर कवि, वक्ता और पत्रकार अटल विहारी वाजपेयी की जन्म जयंती २५ दिसंबर को भारत सरकार प्रतिवर्ष ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाती है। इस वर्ष उनका १००वां जन्मोत्सव है, जिन्होंने प्रखर राजनेता, अजातशत्रु, विचारक, समाज सुधारक एवं राष्ट्र-निर्माता के रूप में न केवल देश के लोगों का दिल जीता है, बल्कि विरोधियों के दिल में भी जगह बनाकर, अमिट यादों को जन-जन के हृदय में स्थापित कर हमसे जुदा हुए थे। अटल जी यह नाम भारतीय इतिहास का एक ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ है, जिससे एक सशक्त जननायक, स्वप्नदर्शी राजनायक, आदर्श चिन्तक, नये भारत के निर्माता, कुशल प्रशासक, दार्शनिक के साथ-साथ भारत को एक खास रंग देने की महक उठती है। उनके व्यक्तित्व के इतने रूप हैं, इतने आयाम हैं, इतने रंग है, इतने दृष्टिकोण हैं, जिनमें वे व्यक्ति और नायक हैं, दार्शनिक और चिंतक हैं, प्रबुद्ध और प्रधान है, वक्ता हैं, शासक एवं लोकतंत्र उन्नायक हैं।

३ बार प्रधानमंत्री रहे अटल विहारी वाजपेयी ने ५ दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहे, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे, अनूठे रहे। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग, और विचारों में निडर। वे भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपने नाम व व्यक्तित्व के बूते पर न केवल सरकार बनाई, बल्कि एक नयी सोच की राजनीति को पनपाया, पारदर्शी एवं सुशासन को सुदृढ़ किया। पिछले कई दशकों में वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते हैं।
विलक्षण प्रतिभा, राजनीतिक कौशल, दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता के कारण कांग्रेस के सभी नेता उनका लोहा मानते रहे। वाजपेयी जी बेहद नम्र इंसान और अहंकार से कोसों दूर थे। उनके प्रभावी एवं बेवाक व्यक्तित्व से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी प्रभावित थे और उन्होंने कहा था कि अटल जी एक दिन भारत के प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे। आज भारतीय जनता पार्टी की मजबूती का जो धरातल बना है, वह उन्हीं की देन है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वे इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताते थे। वे संसद में बहुत प्रभावशाली वक्ता के रूप में जाने जाते रहे हैं। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति ‘विजय पताका’ पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी व पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलतापूर्वक करते रहे। अटल जी ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी-“हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय”, जिससे यह पता चलता है कि बचपन से ही उनका रुझान राष्ट्रीयता एवं हिन्दुत्व की तरफ था। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि से जुड़े विचार उनके काव्य में सदैव ही दिखाई देते थे।
मार्च १९९८ से मई २००४ तक छह साल भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान उनकी सरकार ने पोखरण में ५ भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। वाजपेयी जी ने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ रिश्तों को सौहार्दपूर्ण बनाने की दृष्टि से भी अनेक उपक्रम किए, पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया।
अटल बिहारी वाजपेयी चाहे प्रधानमन्त्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष-उनकी अपनी ही कविताओं की, नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में कभी नहीं चूके। भारत को लेकर उनकी स्वतंत्र सोच एवं दृष्टि रही है-ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। उनकी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है। उन्होंने विज्ञान की शक्ति को बढ़ावा देने के लिए लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान जय किसान’ में बदलाव किया और ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ का नारा दिया। उन्होंने राजनीतिक समस्याओं के अतिरिक्त धार्मिक तथा सांस्कृतिक विषयों पर भी साधिकार कलम चलाई।
इस शताब्दी के भारत के ‘महान सपूतों’ की सूची में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रथम पंक्ति में होगा।
मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे वाजपेयी जी से मिलने के अनेक अवसर मिले। उनके जीवन के सारे सिद्धांत मानवीयता एवं राष्ट्रीयता की गहराई ये जुड़े थे और उस पर वे अटल भी रहते थे, किन्तु पूर्वाग्रह उन्हें छू तक नहीं पाता। वे हर प्रकार से मुक्त स्वभाव के थे और यह मुक्त स्वरूप भीतर की मुक्ति का प्रकट रूप है।

भारतीय राजनीति की बड़ी विडम्बना रही है कि आदर्श की बात सबकी जुबान पर है, पर मन में नहीं। उड़ने के लिए आकाश दिखाते हैं, पर खड़े होने के लिए जमीन नहीं। दर्पण आज भी सच बोलता है, पर सबने मुखौटे लगा रखे हैं। ऐसी निराशा, गिरावट व अनिश्चितता की स्थिति में वाजपेयी जी ने राष्ट्रीय चरित्र, उन्नत जीवन शैली और स्वस्थ राजनीति प्रणाली के लिए बराबर प्रयास किया। वे व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के बदलाव की सोचते रहे। उनका समूचा जीवन राष्ट्र को समर्पित एक जीवन यात्रा का नाम है। जन्म जयन्ती पर मन बार-बार उनकी तड़प को प्रणाम करता है।