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रुत सुहानी आ गयी

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रचनाशिल्प:क़ाफ़िया-आनी/ रदीफ- आ गयी बहर २१२२,२१२२,२१२२,२१२


भाप दरिया से उठी अरु बन के पानी आ गयी,
बूँद बारिश की धरा पे बन के रानी आ गयी।

लहलहाये खेत पोखर ताल सारे भर गये,
सूखते तरु पल्लवों पर‌ फिर जवानी आ गयी।

मन उमंगों से भरा मौसम सुहाना देख कर,
मास सावन में छमक कर रुत सुहानी आ गयी।

जो घटायें सुप्त थी बरसी वो मूसलधार ज्यों,
सो रहे चुपचाप दरियों में रवानी आ गयी।

जो विरानी आँख में देखी कृषक की अब तलक,
उन ही आँखों में चमक देखो नूरानी आ गयी।

हर तरफ वातावरण में गंध सौंधी-सी उठी,
यू़ँ महक उठा चमन जैसे दिवाली आ गयी।

छा गयी हरियाली हरसू लोग खुश दिखते सभी,
बच्चों अरु बूढ़ों में भी फिर से जवानी आ गयी।

आगया सावन सुहाना खिल गये गुलशन सभी,
फूल कलियों के लिए रुत ये रुहानी आ गयी।

सोच में बैठा सुखनवर कलम थामे हाथ में,
जैसे यादों में कोई भूली कहानी आ गयी॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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