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रू-ब-रू तुमको न देखा

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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देखकर तस्वीर को हम, कुछ नहीं अब देखते।
क्या कहें कैसे कहें हम, क्या कहाॅं कब देखते।

कह नहीं सकते तमन्ना, बन रही है दिल में जो,
रू-ब-रू तुमको न देखा, तो यही सब देखते।

चाह तन्हाई की होती, महफ़िलों में क्या मिले,
दिल रहे तन्हा हमेशा, जब कहे तब देखते।

नींद बिन कब ख्वाब आते, ये भी अब आती नहीं,
है यही तस्वीर जिसको, दिल के मतलब देखते।

है तुम्हारी बात ही ये, हम किसी से क्यूं कहें,
तुम बनो इक बार बार तो वो, जो ‘चहल’ रब देखते॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।