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रोमांच से भरी पहली यादगार यात्रा

सुश्री नमिता दुबे
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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२७ सितम्बर विश्व पर्यटन दिवस विशेष……….
उन दिनों समाज,देश विकास की ओर था,लोगों की सोच में अब बदलाव भी आने लगा था,किन्तु कहीं न कहीं अभी भी लोगों की सोच में लड़कियों के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया विद्यमान थाl लड़कियों का अकेले बाहर निकलना बदसलूकी माना जाता था। यद्धपि,मेरे घर में बहुत खुला माहौल थाl माँ कम शिक्षित होने के बावजूद भी हमारे सर्वांगीण विकास में पूर्ण सहयोगी रहीं। मेरी शारीरिक कमजोरी के कारण परिवार के सभी सदस्यों का विशेष ध्यान मुझ पर रहता था।
यह बात सन १९९२ की है,जब नौकरी लगने के बाद मैं ओर मेरी मित्र ने दक्षिण भारत घूमने की योजना बनाई,जिसकी स्वीकृति मुझे बड़ी मुश्किल से मिली। पहली बार मम्मी के निर्णय को पापा की भी सहर्ष स्वीकृति मिली थी। हमने अपनी पूरी यात्रा की योजना निश्चित कर राउंड टिकिट बनवा लियाl ६ जून को हमने इंदौर से यात्रा शुरू की तथा चेन्नई,तिरुपति,महाबलीपुरम,ऊंटी,कोडईकनाल,कोयंबटूर,हैदराबाद,कोचिन,विवेकानंद स्मारक,बंगलौर, एरनाकुलम,पालघाट,रामेश्वरम,वेलांगनी,हैदराबाद से शिर्डी एवं मुंबई होते हुए इंदौर आए। ३२ दिनों का यह सफर मेरे जीवन मे बहुत ही अनोखा और अविस्मरणीय रहा। हम दोनों के पास मात्र २-२ हजार रुपए थेl यात्रा नियोजित थी,हम चाहे जिस स्टेशन पर उतर सकते थे एवं कितने भी दिन रुक सकते थे। हमारे टिकिट की मियाद ३२ दिन थी,अत: उन दिनों में ही हमें अपनी यात्रा पूरी करना थी।
पढ़ाई समाप्त कर नौकरी लगने के बाद पहली बार इतनी लंबी यात्रा पर हम दोनों लड़कियाँ अकेली निकली थीl हम रोमांचित तो थे ही,साथ ही कहीं मन में डर के साथ खुशी भी थी। तब हमने जाना कि,खुशियाँ,यादें,संबंध,अनुभव और ज्ञान पैसे से नहीं मिलतेl पैसे खर्च करके शायद आरामदायक होटलों में रुकते,ट्रेन की बजाय हवाई यात्रा करते तो ये हमें भारतीय संस्कृति,रीति-रिवाज,रहन-सहन,खान-पान तथा लोगों की सोच और उनसे मिले अनोखे अनुभवों से वंचित कर जाते। उन दिनों मोबाइल,एटीएम या प्लास्टिक मनी का चलन नहीं था,हमें यह पता था कि अब सारी समस्याओं से हम दोनों को ही निपटना था। खाने में उबले लाल चावल,मैदे की रोटी,इडली वड़ा,सांभर-डोसा,इन्हीं सबसे काम चलाना पढ़ता था। मित्र के रिश्तेदार बंगलौर और एरनाकुलम में थे,जब उनसे मिले तो उनकी जिज्ञासा सम्मान और स्नेह आज भी अविस्मरणीय है।
यह तय है कि,विषम परिस्थितियाँ ही हमारे जीवन को निखारती है,यानि इस यात्रा ने हमें खर्च की निश्चित योजना बनाना सिखाया। नई जगह थी,हमारे अकेले यात्रा करने का पहला मौका था,इसलिए होटल में रुकना सुरक्षित नहीं लगाl अत: रेलवे स्टेशनों पर हमें प्रतीक्षालय में कमरे मात्र २५ रुपए में आसानी से उपलब्ध हो जाते,वहीं कैन्टीन से भोजन की भी व्यवस्था आसानी से हो जाती थी।
इस यात्रा ने हमें अनगिनत खट्टे-मीठे अनुभव दिए,वहीं हमें भारतीय संस्कृति से परिचित भी करवाया,आत्मविश्वासी बनाया,साथ ही विनम्र,सहयोगी और सामंजस्य का सबक भी सिखाया। मैंने जाना कि यात्रा बहुत सारी जगहों को देखना ही नहीं है,वरन यह तो बदलाव की प्रक्रिया है,जो आपके जीने के तरीके को प्रभावित करती है। यद्यपि,उस समय मैं उस यात्रा का सही मूल्यांकन नहीं कर सकी थी,किन्तु आज जब पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो समझ आता है कि इस यात्रा ने मुझे और मेरे जीवन को कितना प्रभावित किया था। विश्व पर्यटन दिवस पर इस माध्यम से यही कहना चाहूंगी कि,जीवन के असली अनुभव तो पर्यटन से ही मिलते हैंl पर्यटन के माध्यम से हम यह जान सकते है कि हमारी दुनिया और समाज का आधार सह-अस्तित्व का सिद्धान्त ही है,जिसमें एक-दूसरे का सहयोग भी है और एक-दूसरे पर निर्भरता भी।

परिचय : सुश्री नमिता दुबे का जन्म ग्वालियर में ९ जून १९६६ को हुआ। आप एम.फिल.(भूगोल) तथा बी.एड. करने के बाद १९९० से वर्तमान तक शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपका सपना सिविल सेवा में जाना था,इसलिए बेमन से शिक्षक पद ग्रहण किया,किन्तु इस क्षेत्र में आने पर साधनहीन विद्यार्थियों को सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन देकर जो ख़ुशी तथा मानसिक संतुष्टि मिली,उसने जीवन के मायने ही बदल दिए। सुश्री दुबे का निवास इंदौर में केसरबाग मार्ग पर है। आप कई वर्ष से निशक्त और बालिका शिक्षा पर कार्य कर रही हैं। वर्तमान में भी आप बस्ती की गरीब महिलाओं को शिक्षित करने एवं स्वच्छ और ससम्मान जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। २०१६ में आपको ज्ञान प्रेम एजुकेशन एन्ड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी द्वारा `नई शिक्षा नीति-एक पहल-कुशल एवं कौशल भारत की ओर` विषय पर दिए गए श्रेष्ठ सुझावों हेतु मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा और कौशल मंत्री दीपक जोशी द्वारा सम्मानित किया गया है। इसके अलावा श्रेष्ठ शिक्षण हेतु रोटरी क्लब,नगर निगम एवं शासकीय अधिकारी-कर्मचारी संगठन द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है।  लेखन की बात की जाए तो शौकिया लेखन तो काफी समय से कर रही थीं,पर कुछ समय से अखबारों-पत्रिकाओं में भी लेख-कविताएं निरंतर प्रकाशित हो रही है। आपको सितम्बर २०१७ में श्रेष्ठ लेखन हेतु दैनिक अखबार द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। आपकी नजर में लेखन का उदेश्य मन के भावों को सब तक पहुंचाकर सामाजिक चेतना लाना और हिंदी भाषा को फैलाना है।