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लेखनी से राष्ट्र की एकता और संस्कृति का अलख जगाते रहें-श्री प्रसाद

कथा सम्मेलन…

पटना (बिहार)।

माँ शारदे की कृपा से मैं बचपन से ही लिखता रहा हूँ। कहानी ऐसी हो, जो दिल को छू ले। संवेदना से परिपूर्ण प्रेरणात्मक संदेश हो। आम आदमी की कथा, व्यथा, संघर्ष गाथा हो। प्रेमचंद जी मेरे आदर्श हैं। मेरा नाम ‘सेवा सदन’ उनके उपन्यास का नाम है। उनकी ‘पूस की रात’, ‘नमक का दरोगा’ और भी सारी कहानियाँ कालजयी रचना है। युवा साहित्यकारों से यही कहना चाहता हूँ कि आप अपनी लेखनी से राष्ट्र की एकता, अखंडता और संस्कृति का अलख जगाते रहें।
अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में वरिष्ठ कथाकार सेवा सदन प्रसाद (मुम्बई) ने यह बात कही। अवसर बना भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के तत्वावधान में कथा सम्मेलन का, जिसमें रश्मि लहर के नवीन कथा संग्रह ‘१८ पग चिन्ह’ पर चर्चा की गई।
सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि अब लोग छोटी कहानी पसंद करने लगे हैं और इसी लोकप्रियता के कारण आज लघुकथा, गद्य विधा की सर्वाधिक पठनीय विधा बन गई है। कथा कृति ‘१८ पग चिन्ह’ पढ़ते हुए यही महसूस हुआ कि इस खतरे से रश्मि लहर वाकिफ हैं इसलिए उनकी छोटी-छोटी १८ कहानियाँ प्रकाशित हैं। कहानी के अपेक्षा लघु कहानी कहें तो ज्यादा उचित होगा। सरल भाषा होने के कारण अधिकांश कहानी कहीं न कहीं से हमें प्रभावित करती हैं। विषय की विविधता को लेकर कहीं ना कहीं से हमें, समाज और परिवार के साथ खुद से भी जोड़ती है। इन कहानियों में जिज्ञासा, कौतूहल और मनोरंजन का भाव वैशिष्ठ है।

इस आभासी कथा-कवि सम्मेलन में पढ़ी गई कविताओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए मुख्य अतिथि लेखिका रश्मि लहर (लखनऊ) ने कहा कि कार्यक्रम में सभी की कहानियाँ बहुत विशिष्ट तथा हृदयस्पर्शी थीं। सेवा सदन प्रसाद जी की कहानी पहली बार सुनी ‘चेहरे पे चेहरा’। तवायफ की बेटी पर लिखी कहानी का रोचक ताना-बाना तथा कहानी के चरम तक पहुँचते हुए सार्थक रहस्योद्घाटन सुनकर मन प्रसन्न हो गया। डॉ. अनुज प्रभात की कहानी भी विशेष भाव सौन्दर्य समेटे एक नारी के मनोभाव को व्यक्त करने वाली कथा थी।