कुल पृष्ठ दर्शन : 359

You are currently viewing वाणी का मोल अनमोल

वाणी का मोल अनमोल

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
***********************************************************************

किसी ने ठीक ही कहा है-यह सच है कि जीभ में कोई हड्डी नहीं होती,पर यह गलत और अप्रिय बोलने पर आपकी हड्डियां तुड़वा सकती है। शब्दों के भी अपने ज़ायके होते हैं, परोसने से पहले चख लेने चाहिए। चखने में कमी रह जाए,जुबान कड़वी होने के कारण ही भाई-भाई,पति-पत्नी,सास-बहू,देवरानी- जेठानी,ननद-भौजाई,दोस्त-दोस्त में मनमुटाव हो जाता है। रिश्तों की अहमियत भुला दी जाती है। यह सही है कि व्यक्ति की वाणी ही उसका पहला परिचय होता है। यदि हम मधुर व हितभरी वाणी बोलेंगें तो दूसरों को आनंद, प्रेम और शांति की अनुभूति होती है। यदि कड़वी वाणी बोलेंगे तो दूसरों को शूल की तरह भेदती है। यदि हम किसी को गुड़ नहीं दे सकते तो गुड़-सी बात तो कर सकते हैं। यह वाणी का ही प्रभाव है कि मीठा और मधुर बोलने वाला मिर्च का व्यापारी शाम तक सारी मिर्च बेच जाता है और कर्कश और कटु बोलने वाला गुड़ का व्यापारी,गुड़ लिए बैठा रह जाता है। इसलिए कहते हैं कि कठोर वाणी पत्थर से भी तेज टकराती है।

एक बार एक राजा अपने सैनिकों के साथ वन में भृमण करने गए। राजा को बहुत जोर से प्यास लगी। सैनिक पानी की तलाश में इधर-उधर गए। पास में ही एक प्याऊ था,जहाँ एक अंधा व्यक्ति पानी पिला रहा था। एक सैनिक उसके पास गया और बोला-‘अरे!अंधे,एक लोटा पानी मुझे भी दे।’ अंधे व्यक्ति को बुरा लगा,उसने पानी देने से इंकार कर दिया। सैनिक की बात सुन कर प्रधान

सेनापति स्वयं गये और बोले-‘अंधे भाई,मुझे एक लोटा पानी जल्दी से दो।’

अंधे व्यक्ति ने मन में सोचा-‘लगता है,यह पहले वाले सैनिक का सरदार है,मन में कपट है,पर कुछ मीठा बोलता है। अंधे व्यक्ति ने उसे भी मना कर दिया। सेनापति ने राजा से आ कर शिकायत की। अब राजा स्वयं उस अंधे व्यक्ति के पास गए और अभिवादन करके बोले-‘बाबा जी,प्यासा हूँ,गला सूख रहा है,थोड़ा जल देने की कृपा करें,जिससे प्यास मिटे।’

अंधे व्यक्ति ने कहा-‘महाराज आप बैठें,अभी आपको जल पिलाता हूँ।’ पहले अभी आपके सिपाही व सेनापति हो कर गए हैं। हैरान हुए राजा ने पूछा-‘महात्मन आप चक्षुहीन होते भी यह कैसे जान गए कि पहले आए एक सिपाही,एक सेनापति और मैं एक राजा हूँ।’

उसने जवाब दिया-‘महाराज! व्यक्ति की

वाणी ही उसके व्यक्तित्व का ज्ञान कराती है कि वह कितना शिष्ट और सभ्य है।’

तात्पर्य यही कि मीठी वाणी में भगवान का वास होता है,उससे अपना व दूसरों का कल्याण होता है। असत्य दूर होता है व सत्य की रक्षा होती है। मुख से कभी भी ऐसा शब्द नहीं निकलना चाहिए,जिससे किसी का दिल दुखे और उसका अहित हो। जिसकी जुबान गन्दी होती है,उसका मन भी गन्दा होता है।ऐसे व्यक्ति को समाज में कोई सम्मान नहीं देता है।

एक बार पं. मदन मोहन मालवीय से किसी विद्वान ने कहा-‘आप मुझे चाहे सौ गाली दे दीजिए,मुझे गुस्सा नहीं आएगा।’ इस पर मालवीय जी बोले-‘आपके क्रोध की तो बाद में परीक्षा होगी,पहले तो मेरा ही मुँह ही गन्दा हो जाएगा।’

ढंग से कही हुई बात प्रिय और मधुर लगती है। कटु वाणी का प्रयोग इतना भयंकर होता है कि वह मनुष्य के ह्रदय को छेद देता है। यह जरूरी ही है कि हमें दूसरे के ह्रदय को ठेस पहुंचाने वाणी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वाणी में विवेक,मधुरता,अपनत्व और सत्यता का सामंजस्य होने से हमारे जीवन में दक्षता आती है।

“तुलसी मीठे वचन से सुख उपजत चहुँ ओर,

वशीकरण एक मंत्र है,तज दे वचन कठोर।”

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

Leave a Reply