पूनम दुबे
सरगुजा(छत्तीसगढ़)
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हवाओं की रवानगी थी,
मेरी रफ़्तार भी कुछ तेज थी
मौसम खराब का अंदेशा था,
थोड़ा मन डरा हुआ था।
हर कदम पर कोई पीछा कर रहा था,
जैसे कदम रुकते वो भी
थम-सा जाता था,
कई बार ऐसा महसूस हुआ
फिर मैं बोली कौन हो तुम ?
सामने क्यो नहीं आते।
उसने कहा-मैं जल पानी,
मुझे आप बचा लीजिए
मेरी रक्षा करो।
यहां-वहां आवारा सड़कों पर,
बहता रहता हूँ,
मेरा अपमान ना करो
मेरी जरूरत को समझो।
इस धरती को मवेशियों को,
तुम सबको पेड़-पौधों को
मेरी बहुत जरूरत है,
बूंद-बूंद संचय करना सीखो
अपने लिए अपने पीढ़ियों के लिए,
यही कहना चाहता हूँ।
दूसरे को मत देखो,
उसने क्या किया-बहा दिया
या मुझे समेट लिया,
तुम अपना कर्म करो
मुझे जरूरत है तुम सबके,
सहयोग की,मेरी रक्षा करो,
चिंतन करो सोचो-मैं नहीं
रहूंगा तो क्या होगा ?
मुझे बर्बाद मत करो।
थोड़ा मैं भी शांत हो गई,
हमारे लिए ही खुद को
समेटने की बात कही,
और परछाई चली गई,
मेरे दिमाग को झकझोर गई।
सही ही कहा मुझे,
भी समझा गई॥
परिचय-श्रीमती पूनम दुबे का बसेरा अम्बिकापुर,सरगुजा(छत्तीसगढ़)में है। गहमर जिला गाजीपुर(उत्तरप्रदेश)में ३० जनवरी को जन्मीं और मूल निवास-अम्बिकापुर में हीं है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत विशारद है। साहित्य में उपलब्धियाँ देखें तो-हिन्दी सागर सम्मान (सम्मान पत्र),श्रेष्ठ बुलबुल सम्मान,महामना नवोदित साहित्य सृजन रचनाकार सम्मान( सरगुजा),काव्य मित्र सम्मान (अम्बिकापुर ) प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन-संगोष्ठी आदि में सक्रिय सहभागिता के लिए कई सम्मान-पत्र मिले हैं।