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वह जीवन के कवि-श्री मानव

संगोष्ठी…

दिल्ली।

वह जीवन के कवि हैं, उनमें बेचैनी थी, वह कुछ अलग हटकर करना चाहते थे। उन्होंने मनुष्य प्रकृति स्त्री पर गीत लिखे हैं।
यह विचार कार्यक्रम के अध्यक्ष विजय किशोर मानव ने व्यक्त किए। अवसर रहा ठाकुर प्रसाद सिंह की जन्मशती के उपलक्ष्य में हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित संगोष्ठी का। इसमें वृंदावनलाल वर्मा कृत ‘झांसी की रानी’ पुस्तक के नाट्य रूपांतरण का लोकार्पण भी किया गया।शुभारंभ दीप प्रज्जवलन से किया गया। वक्ताओं में डॉ.राजेंद्र गौतम, डॉ. अरविंद त्रिपाठी, डॉ. राधे श्याम बंधु एवं डॉ. सुशील द्विवेदी ने वक्तव्य प्रस्तुत किया। अकादमी के सचिव संजय कुमार गर्ग ने कहा कि अकादमी उन साहित्यकारों को सामने लाने का प्रयास कर रही है, जो समय की आंधी में कहीं खो गए हैं। उन्हीं साहित्यकार की कड़ी में आज हम ठाकुर प्रसाद सिंह पर चर्चा करने के लिए उपस्थित हुए हैं।
विशिष्ट अतिथि उमेश प्रसाद सिंह ने उनके शिष्य होने के नाते कुछ संस्मरण साझा करते हुए कहा कि उनका होना हमें कई तरीके से उत्प्रेरित करता है। उनका होना एक उत्सव होने की तरह था। श्री गौतम ने कहा कि वंशी और मादल की रचना करके भी अमर हो गए। उनके अनुसार बोलना ही जीत है चलना ही नृत्य है और वाद्य यंत्र ही संगीत है। डॉ. त्रिपाठी ने कहा उनके लिखने में निरंतर बाधाएँ आती रही पर उनकी रचनाएँ हमेशा कालजयी रही है। श्री राधेश्याम बंधु ने उन्हें बहुमुखी प्रतिभा का साहित्यकार बताया। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी उन्होंने कभी कलाम के साथ समझौता नहीं किया।
कार्यक्रम में कहानीकार बलराम जी, सुप्रसिद्ध कवयित्री भावना तिवारी, डॉ. हरि सिंह पाल, लघु कथाकार बलराम अग्रवाल, प्रो.अमरेंद्र पांडे, हिंदीप्रेमी नरेश कुमार शर्मा और आर.एस. सारस्वत उपस्थित रहे। अकादमी के उपसचिव ऋषि कुमार शर्मा ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)