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लहरा के तिरंगा भारत का

मालती मिश्रा ‘मयंती’
दिल्ली
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लहरा के तिरंगा भारत का
हम आज यही जयगान करें,
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।

सिर मुकुट हिमालय है इसके
सागर है चरण पखार रहा,
गंगा की पावन धारा में
हर मानव मोक्ष निहार रहा,
फिर ले हाथों में राष्ट्रध्वजा
हम क्यों न राष्ट्रनिर्माण करें।
यह मातृभूमि गौरव अपना,
फिर क्यों न इसका मान करेंll

इसकी उज्ज्वल धवला छवि
जन-जन के हृदय समायी है,
स्वर्ण मुकुट सम शोभित
हिमगिरि की छवि सबको भाई है।
श्वेत धवल गंगा सम नदियाँ
हर पल इसका गान करेंl
यह मातृभूमि गौरव अपना,
फिर क्यों न इसका मान करेंll

नव नवीन पहनावे इसके
भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी,
शंखनाद से ध्वनित हो रहे
हर पल मथुरा और काशी,
पावन,सुखदायी छवि इसकी
क्यों न हम अभिमान करेंl
यह मातृभूमि गौरव अपना,
फिर क्यों न इसका मान करेंll

लहरा के तिरंगा भारत का,
हम आज यही जयगान करेंl
यह मातृभूमि गौरव अपना,
फिर क्यों न इसका मान करेंll

परिचय-मालती मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘मयंती’ है। ३० अक्टूबर १९७७ को उत्तर प्रदेश केसंत कबीर नगर में जन्मीं हैं। वर्तमान में दिल्ली में बसी हुई हैं। मालती मिश्रा की शिक्षा-स्नातकोत्तर (हिन्दी)और कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप साहित्य सेवा में सक्रिय हैं तो लेखन विधा-काव्य(छंदमुक्त, छंदाधारित),कहानी और लेख है।भाषा ज्ञान-हिन्दी तथा अंग्रेजी का है। २ एकल पुस्तकें-अन्तर्ध्वनि (काव्य संग्रह) और इंतजार (कहानी संग्रह) प्रकाशित है तो ३ साझा संग्रह में भी रचना है। कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य व लेख प्रकाशित होते रहते हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा,हिन्दी भाषा का प्रसार तथा नारी जागरूकता है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-अन्तर्मन से स्वतः प्रेरित होना है।विशेषज्ञता-कहानी लेखन में है तो रुचि-पठन-पाठन में है।

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