जबरा राम कंडारा
जालौर (राजस्थान)
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वाणी से पहचान है,वाणी ही व्यवहार।
सोच-समझ कर बोलिये,सार सार कर सार॥
वाणी लखे चरित्र से,वाणी लखे विचार।
वाणी से ही जीत है,वाणी से ही हार॥
वाणी से झगड़े मिटे,वाणी छैड़े जंग।
वाणी से नफरत करे,वाणी से ही रंग॥
वाणी प्रेम बढात है,वाणी फैले द्वेष।
वाणी साधारण रखे,वाणी करे विशेष॥
वाणी से ऊंचा बने,वाणी से ही नीच।
वाणी दूर-समीप है,वाणी धर रख बीच॥
वाणी से विपदा ढहे,वाणी से सुख होय।
वाणी सब कुछ कर सके,समझे समझूँ सोय॥
वाणी कविता में ढले,वाणी लिखती लेख।
वाणी रच साहित्य है,इसके क्षेत्र अनेक॥