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विनाश की ओर कदम

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’
बरेली(उत्तरप्रदेश)
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पर्यावरण दिवस विशेष……

नदी-ताल में कम हो रहा जल,और हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं,
ग्लेशियर पिघल रहे और समुन्द्र तल यूँ ही बढ़ते ही जा रहे हैं।
काट कर सारे वन,कांक्रीट के कई जंगल बसा दिये विकास ने-
अनायस ही विनाश की ओर कदम दुनिया के चले ही जा रहे हैं॥

पॉलीथिन के ढेर पर बैठ कर हम ‘पॉलीथिन हटाओ’ का नारा दे रहे हैं,
प्रक्रति का शोषण करके सुनामी भूकंप का अभिशाप ले रहे हैं।
पर्यवरण प्रदूषित हो रहा है दिन-रात,हमारी आधुनिक संस्कृति के कारण-
भूस्खलन,भीषण गर्मी,बाढ़,ओलावृष्टि की नाव बदले में आज हम खे रहे हैं॥

ओज़ोन लेयर में छेद,कार्बन उत्सर्जन अंधाधुंध दोहन का ही दुष्परिणाम है,
वृक्षों की कटाई बन गया आजकल,विकास प्रगति का दूसरा नाम है।
हरियाली को समाप्त करने की बहुत बड़ी कीमत चुका रही है ये दुनिया-
इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र का नित असुंतलन आज हो गया आम है॥

सोचें क्या दे कर जायेंगे हम अपनी अगली पीढ़ी को विरासत में,
शुद्ध जल और वायु को ही कैद कर दिया है जीवन शैली की हिरासत में।
जानता नहीं आदमी कि,कुल्हाड़ी पेड पर नहीं,पाँव पर चल रही है-
प्रकृति नहीं सम्पूर्ण मानवता ही नष्ट हो जायेगी इस दानव-सी हिफाज़त में॥

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