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वीरता,दृढ़ता का दूजा नाम ‘झाँसी की रानी’

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस विशेष….

रानी लक्ष्मीबाई (जन्म-१९ नवम्बर १८२८, मृत्यु-१८ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और १८५७ की राज्य क्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ २९ वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुईं। बताया जाता है कि ये सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी।
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में हुआ था। बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से मनु कहा जाता था। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत,बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की महिला थी। जब माँ की मृत्यु हो गई,तब घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था,इसलिए पिता।मोरोपंत जी इन्हें अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग यहां प्यार से ‘छबीली’ कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। रानी लक्ष्मीबाई ने १ पुत्र को जन्म दिया,परन्तु ४ महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गई। १८५३ में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई। पुत्र गोद (दामोदर राव )लेने के बाद गंगाधर राव की मृत्यु हो गई।
ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत दत्तक बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि,इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा,पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।
झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया,जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गई और युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी,को अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। फिर जनवरी में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च में शहर को घेर लिया। २ हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया,परन्तु रानी दामोदर राव के साथ बच कर भाग निकलने में सफल हो गई और कालपी पहुँची,तथा तात्या टोपे से मिली।
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के १ क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी,इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। १८ जून १८५८ को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि,रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता,चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय तो थी ही,विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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