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शत-शत नमन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सुरों की अमर ‘लता’ विशेष-श्रद्धांजलि….

अस्ताचल लतिका लता,सुरभि गीत संसार।
देशरत्न सुर कोकिला,भवसागर से पार॥

प्रीत-गीत-संगीत की,सामवेद प्रतिरूप।
अवतारी माँ शारदा,धवल कीर्ति स्वर भूप॥

पंचम स्वर पिक गायिका,कालजयी वरदान।
चन्द्रकला शीतल मधुर,लता लवंगी तान॥

पद्मावती जग गायिका,पद्मविभूषण ताज।
दादा साहेब फाल्के,गरिमा भारत नाज॥

शान्ति कान्ति मृदुला प्रकृति,महाराष्ट्र थी रत्न।
अमर गीत माँ भारती,सार्थवाह थी यत्न॥

प्रीतिलता हृदतल सदय,ममतांचल करुणेश।
सत्यं शिव सुंदर प्रकृति,भक्ति प्रीति रत देश॥

कोटि-कोटि धड़कन लता,मधु वसन्त मधु गान।
आन-बान सम्मान जग,देश गान अभिमान॥

अभिनव गायन कोकिला,मधुसावन मनमोर।
विरह राग बरसी लता,गायन मिलन चकोर॥

भाषाविद पहचान सुर,यादों की आवाज।
क्रान्ति वीर यश गायिका,शान्ति दूत ऋतुराज॥

रोम-रोम जय हिंद स्वर,तन्मय हिन्दुस्तान।
सुरभित वन्दे मातरम,राष्ट्र गान थी शान॥

शानदार मृदुला गला,गीत धरोहर देश।
तरु वन कानन गिरि शिखर,कायल स्वर उपवेश॥

मानवता पहचान थी,नैतिकता पथ मान।
लज्जा श्रद्धा मानदा,आज लता अवसान॥

युग-युग अरुणिम गायिका,सारस्वत वरदान।
सुर साम्राज्ञी थी लता,हर पीढ़ी थी मान॥

हुई लीन चिर शान्ति में,ब्रह्मलीन गोलोक।
कला जगत मानक क्षितिज,फैला जन-मन शोक॥

खालीपन है देश में,लता गमन चिर शान्ति।
शोकाकुल रवि शशि प्रभा,मलिन गीत की कान्ति॥

सप्तसिन्धु भाषा विविध,गीत लता सुर तान।
नवरस ललिता गायिका,नारी शक्ति महान।

गीता थी सोलह कला,संगीता मधुमास।
विप्रलंभ श्रृंगार रस,अमृत प्रणय मिठास॥

सुर निनाद अभिराम हिय,शौर्य गीत बलिदान।
दुख सागर गगमगीन स्वर,विरह मिलन मुस्कान॥

दीपशिखा आशा लता,दीनानाथ कुल लाज।
भारत माँ स्वर आत्मा,जन मन गीत समाज॥

गाथा स्वर्णिम गायिकी,लिखी स्वर्ण इतिहास।
माँ बहना दीदी लता,तनया देश विलास॥

हर्षित हिय भारत धरा,लता सुता निधि गान।
नश्वर काया कोख में,साश्रु समाती मान॥

गीत लता युग-युग अमर,भुला न पाऍं लोग।
साश्रु नमन श्रद्धा सुमन,दे ‘निकुंज’ मन योग॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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